देवभूमि हिमाचल प्रदेश में साल भर मेलों त्यौहारों का दौर जारी रहता है। मेले पहाड़ी प्रदेश को एक अलग पहचान दिलाते है। आपसी भाईचारे एवम सौहार्द का प्रतीक मेले आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है। ये मेले भाईचारे के साथ व्यापार एवम स्थानीय लोगों को रोज़गार देने का भी साधन है। ऐसा ही एक मेला है चढ़ियार के टांची में होने वाला धूईं का मेला जो हर साल लोहड़ी के एक हफ़्ते बाद मनाया जाता है। जिसमें अखाड़ा सजता है औऱ दूर-दूर के पहलवान अपना दम दिखाते है।
ये मेला लखदाता के नाम पर सजता है। इसमें आस-पास के लोग दूध घी लखदाता को चढ़ाते है। साथ ही मन्नत भी करते है कि उनकी गायें और भैंसे हमेशा दूध देती रहें। ये लोग ही कुश्ती भी करवाते है और घर में दूध घी की मन्नत मांगते है। मन्नत पूरी होने पर लोग यहां चढ़ावा चढ़ाने आते है। पहले ये मेले एक ही दिन के लिए सजता था लेकिन अब स्थानीय लोगों की मांग और सहयोग से दो दिन लगता है। जिसमें पहलवानों की कुश्ती आकर्षण का केन्द्र रहती है। जिसमें दूर दराज से पहलवान आते है और अपना दम दिखाते है। जिसे देखने आसपास के लोगों की भीड़ एकत्रित होती है।