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कुल्लू: तीर्थन घाटी की ग्राम पंचायत नोहण्डा के हजारों ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित

<p>हिमाचल प्रदेश उप मण्डल बंजार में तिर्थन घाटी के कई गांव आजादी के दशकों बाद भी कई मुलभुत सुविधाओं से बंचित है। यहां की ग्राम पंचायत नोहण्डा के सैंकड़ों लोग आज भी इन मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ग्राम पंचायत नोहण्डा कहने को तो विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार है जहां पर जैविक विविधता का अनमोल खजाना छिपा पड़ा है, यहां प्रतिवर्ष सेंकड़ों की संख्या में अनुसंधानकर्ता, प्राकृतिक प्रेमी, पर्वतारोही, ट्रैकर और देशी विदेशी सैलानी घूमने फिरने का लुत्फ उठाने के लिए आते है। लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों बाशिंदे आजतक आजादी के सात दशक बाद भी विकास से कोसों दूर है। यहां के लोग अभी तक सड़क, रास्तों, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी कई मूलभूत सुविधाओं से बंचित्त है।</p>

<p>इस पंचायत के गांव दारन, शूंगचा, घाट, लाकचा, नाहीं, शालींगा, टलींगा, डींगचा, खरुंगचा और झनियार आदि गांव के सैंकड़ों लोग अभी तक सरकार व प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे है कि कब तक उनकी देहलीज तक भी सड़क पहुंच जाए। यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबुर है जो अभी कुछ सालों कुछ बर्ष पूर्व लोगों द्वारा लगाए गए निजी तार स्पेन काफी फायदेमंद साबित हुए हैं। यही नहीं जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी पगडंडी रास्तों से लकड़ी की पालकी में उठा कर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल व इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब दो से पांच घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है।</p>

<p>नाहीं गांव के लोगों का कहना है कि यहां पर सरकार ने प्राइमरी और मिडल स्कूल तो खोल दिए हैं लेकिन अध्यापकों और सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई का स्तर काफी हद तक गिर गया है। यहां के प्राइमरी स्कूल की चौथी कक्षा का छात्र पहली कक्षा का पाठ भी ठीक से नहीं पढ़ पाता है। जिस कारण उनके&nbsp; बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। यहां के प्राइमरी स्कूल में पहले 37 बच्चे पड़ते थे लेकिन अब मात्र 26 बच्चे पड़ रहे है। अभिभावकों को अपने बच्चों के भविष्य की चिन्ता सत्ता रही है। कुछ ने अपने बच्चों को यहां से अन्य नजदीकी स्कूलों तथा कुछ लोगो ने निजी स्कूलों में दाखिला ले लिया है।</p>

<p>प्राइमरी स्कूल में शौचालय तो बने हुए हैं जिन में ताला लटका रहता है क्योंकि स्कूल के लिए पेयजल आपूर्ति की पाइप लाइन सदियों से बन्द पड़ी है। मिडडे मील के लिए भी दूर गांव से पानी ढोना पड़ता है और स्कुली छात्र घर से बोतलों में पानी भर कर साथ ले जाते है । इस समय यहाँ पर 26 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जिनके लिए मात्र एक ही अध्यापक कार्यरत है। इस स्कूल में अभी तक चपड़ासी की भी नियुक्ति नहीं हुई है। इसी स्कूल भवन के एक कमरे में आंगनबाड़ी केन्द्र भी चलता है जो यहाँ के छोटे छोटे बच्चों को भी पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है। मिडल स्कूल में भी अभी तक एक ही नियमित शास्त्री अध्यापक कार्यरत है जबकि एक अध्यापक को स्कूल प्रबंधन कमेटी की ओर से नियुक्त किया गया है। यहां पर पड़ाई कर रहे छात्रों को गणित विषय को समझने व पढ़ने में काफी दिक्कत ही रही है। यदि यही हालात रहे तो लोगों को मजबूरन अपने बच्चों को कहीं अन्यंत्र जगह में भेजना पड़ेगा।</p>

<p>नाहीं गांव के निवासी लोभु राम का कहना है कि अध्यापक की कमी बारे उन्होंने मुख्यमंत्री संकल्प सेवा में भी शिकायत दर्ज की थी जहां से उन्हे समाधान भी मिला और एक अध्यापक के नियुक्ति आदेश भी यहाँ के लिए हुए थे लेकिन वह अध्यापक एक सिर्फ एक दिन इलाका और स्कूल भवन को देखकर वापिस चला गया है जो आजतक बापिस नही आया। हो सकता है उसने कहीं बाजार की तरफ अपनी एडजस्टमेंट कर ली हो।</p>

<p>इसके अलावा यहाँ के गांव नाहीं, लाकचा और धारा नाहीं में लोगों को पीने के पानी की काफी ज्यादा समस्या रहती है। इन गांव के लिए जी पाइप लाइनें बिछी हुई है वो कई जगह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। यहां के वासियों को सर्दियों के मौसम में पीने के पानी की काफी ज्यादा किल्लत रहती है। आजकल यहाँ पर बर्फवारी का दौर चला हुआ है जिस कारण लोगों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। यहां पर पानी की पाइपें व सोर्स जाम होने की वजह से लोगों को अपने व पशुओं के लिए बर्फ को पिघलाकर पानी का इंतजाम करना पड़ता है।</p>

<p>इन गांव के लिए हड़ीनाला से एक पेयजल योजना का निर्माण प्रस्तावित था जिसका कार्य भी अभी तक धरातल पर न उत्तर कर कागजों तक ही सिमटा पड़ा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर यहां कोई भी दवाखाना या सरकारी डिस्पेंसरी नहीं है लोगों को सर्दी जुकाम की दवा लेने के लिए भी करीब 6 किलोमीटर का पैदल सफर करके पहाड़ी रास्तों से होकर गुशैनी पहुँचना पड़ता है। आजकल बर्फवारी के दौरान सारे पहाड़ी रास्ते फिसलन भरे और खतरनाक हो जाते है कई जगह पर तो लोगों चलने में काफी दिक्कत होती है। सभी पहाड़ी रास्ते कच्चे बने हुए हैं और खतरनाक स्थानों पर कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं है। यहां के लोगों ने जनमंच के दौरान भी शासन प्रशासन के सामने अपनी समस्याओं को रखा था लेकिन अभी तक&nbsp;&nbsp; किसी भी समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है।</p>

<p>लोगों का कहना है कि विश्व धरोहर की अधिसूचना जारी होने के पश्चात पार्क क्षेत्र से उनके हक हकुक़ छीन लिए गए लेकिन पार्क प्रबन्धन ने प्रभावित क्षेत्र के लोगों के उत्थान एवं विकास के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए हैं। यदि यहां के आम रास्तों को भी अच्छे से घोड़े खच्चर चलने लायक बनाया होता तो भी लोगों को कुछ राहत मिल सकती थी। इस क्षेत्र के लोगों को आजतक राजनेताओं से सड़क के नाम पर महज कोरे आश्वासन ही मिलते रहे है मगर उनके दर्द को कोई नहीं समझ पा रहा है ना ही सरकार और ना ही प्रशासन। लोगों का कहना है कि सड़क के नाम से बर्ष 2008 से सभी दलों के नेता कोरे आश्वासन देकर चले जाते हैं लेकिन धरातल स्तर पर कुछ भी परिवर्तन नहीं हो रहा है।</p>

<p>सड़क निर्माण के नाम पर अभी महज कागजी घोड़े ही दौड़ रहे है जो ना जाने किस औपचारिकता के पूरे होने का इंतजार कर रहे है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि उनकी समस्या के समाधान करने का आश्वासन कई बार सालों से राजनेताओं से चुनाव के वक्त मिलते रहे लेकिन समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। लोगों ने अपने मानवअधिकारों और मौलिक अधिकारों का हनन होने पर काफी रोष जताया है और मीडिया के माध्यम से अपील की है कि उनकी पुकार को मुख्यमंत्री जय राम तक पहुंचाए। लोगों को उम्मीद ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि मुख्यमंत्री उनके दर्द को जरूर समझेंगे। यदि गाँधीगिरी से इनकी समस्याओं का हल नहीं होता है तो नोहण्डा वासी एक व्यापक आन्दोलन करने को मजबूर हो सकते हैं।</p>

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