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कैसे बढ़ेगा हिमाचल के खिलाड़ियों का हौंसला, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की बात हुई हवा हवाई

मनोज धीमान |

एक ओर सरकार खेलों को बढ़ावा देने के बड़े-बड़े दावे करती है दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण और रजत पदक जीतने वाले खिलाड़ियों की अनदेखी की जा रही है। स्थिती उस वक्त हैरत करने वाली हो जाती है जब अनदेखी उन बेटियों की हो रही हो जिनके नाम पर सरकारें बड़े-बड़े अभियान चलाने की बातें हांकती हैं। हालात ऐसे हैं कि इन खिलाड़ियों को दोबारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने की तैयारी के लिए दुकानों में जाकर चंदा मांगना पड़ रहा है।

यहां देंखे सरकार द्वारा इनकी अनदेखी पर क्या बोलीं ये खिलाड़ी…

स्वर्ण और रजत पदकों को अपने गले में लटकाए, हाथों में अपनी खेल प्रतिभाओं का लोहा मनवाने का प्रमाण पत्र पकड़े धर्मशाला पहुंची इन बेटियों के दर्द की दास्तां कुछ इस तरह से है, कि अच्छे-अच्छों का सरकार से मन उचाट हो जाए ।

यहां खिलाड़ी हैं परेशान…

दरअसल, ये बेटियां कांगड़ा की वो होनहार खिलाड़ी हैं। जिन्होंने हाल ही में भूटान में हुई साउथ एशियन ग्रैपलिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण और रजत पदक हासिल किए। बावजूद इसके आज इन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए बाजारों में चंदा इकट्ठा करना पड़ रहा है। वो भी ऐसी स्थिती में जब केंद्र और राज्य की सरकारें बेटियों के उत्थान के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं चला रही हैं।

ग्रैपलिंग, ग्रासलिन और ताईक्वांडो की खिलाड़ियों ने दावा किया कि इनका चयन 19 सितंबर से कजाकिस्तान में होने वर्ल्ड ग्रैपलिंग चैंपियनशिप के लिए हुआ है, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते अभ्यास के लिए पूरी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। उन्होंने बताया कि भूटान में हुई ओपन चैलेंज गेम्स में देश के लिए स्वर्ण और रजत पदक जीत चुकी हैं। सरकार से लेकर स्थानीय विधायक से भी मदद की गुहार लगाई गई, लेकिन कहीं से कोई सहायता नहीं मिली।