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शिक्षक हरिदत्त के हौंसले के सामने हाथों की लकीरें भी हारी

पी. चंद |

कहते हैं किस्मत हाथों की लकीरों में होती है लेकिन जिनके हाथ नहीं होते क्या उनकी किस्मत नहीं होती। तो मिलिए ऐसे शिक्षक से जिसने हाथ न होने से अपनी किस्मत पैरों से ही लिख डाली। ये है सिरमौर के दूरदराज क्षेत्र मालगी पंचायत के शिक्षक हरिदत्त जो न सिर्फ अध्यापकों, बल्कि समूचे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है। मालगी में स्थित प्राइमरी सरकारी स्कूल में तैनात हरिदत्त की जन्म से ही दोनों बाजुएं और हाथ नहीं हैं। मगर हरिदत्त ने इसे अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दिया। बल्कि पैरों के सहारे अपनी किस्मत बदल दी।  स्कूली बच्चों को हाथ के बजाए पैरों से पड़ा देते है।

हरिदत्त कहते हैं कि उन्हें कोई भी कार्य करने में कोई समस्या नहीं है। बच्चों की कॉपी हो या ब्लैकबोर्ड, अपने पैरों से चॉक और पेन का बखूबी इस्तेमाल कर लेते हैं। वह सरकार द्वारा अपंगता की बजाय दिव्यांग के शब्द को सराहनीय बताते हैं। पिछले 27 सालों से हरिदत्त ने इस ग्रांव के कई ऐसे बच्चों को पढ़ाया है, जिनको आज बड़े शहरों में अच्छी नौकरियां मिली हैं। बचपन से ही स्वयं पर निर्भर रहने वाले हरिदत्त आज भी सुबह उठकर नहाने, खाने, स्कूल आने, पढ़ाने से लेकर बाकी सभी दिनचर्या के काम करने में स्वयं पूर्णतः सक्षम हैं।

31 अक्तूबर 1970 को जन्मे हरिदत्त शर्मा की जन्म से ही दोनों बाजुएं नहीं हैं। प्रकृति द्वारा इस नन्हें बच्चे के साथ किए गए खिलवाड़ से दुखी न होकर मां-बाप ने इसे परमात्मा की इच्छा मानते हुए स्वीकारा और उसे कामयाब बनाने और हर परिस्थिति में जिंदा रखने की हर संभव कोशिश की। अन्य 2 भाइयों व दो बहनों ने भी हरिदत्त को कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी और उनकी हर जरूरत को समय से पहले पूरा करने का प्रयास किया। नतीजतन इस दिव्यांगता के बावजूद भी हरिदत्त ने जिंदगी जीने का हुनर सीख लिया।

मालगी से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद हरिदत्त ने हाई स्कूल सतौन से 10वीं की शिक्षा ग्रहण की, जिसमें उनके सहपाठियों ने भी उनका बहुत सहयोग किया। 26 फरवरी 1992 को हरिदत्त को जेबीटी के तहत राजकीय प्राथमिक पाठशाला मालगी में बतौर शिक्षक नियुक्त किया गया और साथ ही सरकार ने यहीं उनके गृह ग्राम में ही बने स्कूल में उनकी स्थाई नियुक्ति कर दी।