"कोस कोस पर बदले पानी, दो कोस पर बाणी" ये कहावत भारत में इसलिए बनी क्योंकि विविधताओं के इस देश में ये सच्चाई है। पहाड़ी प्रदेश हिमाचल की बोलियों पर भी ये बात सटीक बैठती है। लेकिन वक़्त के चक्र में हिमाचल की कुछ बोलियां आज लुप्त होने की कगार पर है। जिनके संरक्षण एवं संबर्धन के लिए भाषा एवं संस्कृति विभाग सामने आया है।
हिमाचल प्रदेश में लुप्त हो रही बोलियों एवं प्रचलित बोलियों पर भाषा नीति, संस्कृत को राज्य में दूसरी भाषा का दर्जा दिलवाने तथा पहाड़ी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूचि में दर्ज करवाने के उद्देश्य से भाषा एवं संस्कृति विभाग 19 से 24 मार्च तक गेयटी थियेटर में आवासीय पहाड़ी सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इस समारोह का शुभारंभ सचिव, भाषा एवं संस्कृति डा. पूर्णिमा चौहान ने किया।
भाषा एवं संस्कृति विभाग सचिव ने बताया कि आवासीय पहाड़ी सप्ताह की रूप रेखा में हिमाचल प्रदेश की बोलियों के संरक्षण एवं सर्वंद्धन को ध्यान में रखते हुए बोलियों से जुड़ी विभिन्न विधाओं लोक साहित्य, नृत्य, संगीत, चित्रकला, शिल्पकला, रीति-रिवाजों, हस्तशिल्प, आभूषणों, वेश-भूषा एवं पहाड़ी बोलियों पर बनी फिल्मों और व्यंग्यात्मक धारावाहिक के माध्यम से प्रदेश की बोलियों को प्रकाश में लाया जाएगा, ताकि प्रदेश की युवा पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति की ओर आकृष्ट हो सके। इस समारोह के कार्यक्रमों में 12 सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें कार्यशाला, सेमीनार और संगोष्ठियों का भी आयोजन किया जाएगा।
आज पहाड़ी बोलियों के सैंद्धांतिक पक्ष पर प्रदेश के प्रतिष्ठित विद्धानों एवं लोक साहित्यकारों द्वारा शोध पत्र पढ़े जाएंगे तथा उस पर संवाद भी करवाया जाएगा। प्रदेश की बोलियों को भाषा का दर्जा दिलाने तथा राज्य में संस्कृत को दूसरी भाषा के रूप में अपनाने के लिए इन कार्यक्रमों में निर्धारित संगोष्ठियां व सेमीदारों के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न भागों से आमंत्रित विद्धान, साहित्यकारों, भाषा विशेषज्ञों तथा आलोचकों से गहन विचार-विमर्श करवाया जाएगा।
सांयकालिन सत्र में हिमाचल की बोलियों के उत्थान एवं प्रोत्साहन के लिए ‘आज पुरानी राहों से‘ शीर्ष के अन्तर्गत पहाड़ी बोलियों पर फिल्में और धारावाहिक दिखाए जाएंगे। इस पर भी परस्पर संवाद करवाया जाएगा। आवासीय पहाड़ी सप्ताह के दौरान आयोजित करवाए जा रहे कार्यक्रमों में इन क्षेत्रों से जुड़े ख्याति प्राप्त व्यक्तियों, रूचि रखने वालों, स्वैच्छिक संगठनों तथा जन साधारण से भी सुझाव आमंत्रित किए जा रहे हैं।