Follow Us:

मंडी: सुंदरनगर के श्रवण कुमार ने चीड़ की पत्तियों से तैयार किया धुआं रहित कोयला

सचिन शर्मा |

उपमंडल सुंदरनगर की ग्राम पंचायत चांबी के गांव द्रमण निवासी गांव श्रवण कुमार ने अपनी टीम के साथ मिलकर हिमाचल के जंगलो को आग से बचाने के लिए एक नई शुरूआत की है। उन्होंने जंगलो में चीड़ के पेड़ों से गिरने वाली पत्तियों (चलारू) से धुआं रहित कोयला तैयार कर दिया है। इस कोयले के तैयार होने से हिमाचल प्रदेश के जंगल जलने से बचने के साथ-साथ जंगल की आग से लुप्त हो रही वन और जीव संपदा को बचाने में भी एक संजिवनी की तरह काम आएगी।

कोयला बनाने के लिए सुंदरनगर की ग्राम पंचायत चांबी के एक प्रतिनिधिमंडल ने खाका तैयार कर प्रदेश सरकार को प्रेषित किया है।  प्रतिनिधिमंडल ने जिला स्तरीय रेडक्रॉस मेले के समापन अवसर पर प्रदेश रेडक्रॉस सोसायटी की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की पत्नी डा. साधना ठाकुर को संपूर्ण जानकारी और तकनीक को प्रोत्साहन देने के लिए एक रिप्रजेंटेशन भी सौंपी गई। चीड़ की पत्तियों से कोयला बनाने की इस तकनीक से सरकार और वन विभाग को भी सीधा फायदा होगा।

इस बारे में जानकारी देते हुए श्रवण कुमार ने कहा कि उनकी टीम द्वारा चीड़ के पत्तियों (चलारू) से धुआं रहित कोयला तैयार किया गया है। इसे हम घरेलू ईंधन की कह सकते है जिससे खाना बनाया और पानी गर्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे सर्दियों में घर और ऑफिस के कमरों को गर्म किया जा सकता है। इस ईंधन की सबसे बड़ी बात है की इसे बिल्कुल धुंआ रहित बनाया गया है। इससे किसी भी प्रकार का धुंआ नहीं निकलेगा।

उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि इस प्रोजेक्ट को मनरेगा के तहत क्रियान्वित किया जाना चाहिए, जिससे हिमाचल प्रदेश के जंगल आग से बच सकेंगे और हर साल आग की वजह से मरने वाले जंगली जानवर भी बच पाएंगें। श्रवण कुमार ने कहा हिमाचल प्रदेश के जंगलों में ज्यादा तर औषधियां हैं जो जगलों के जलने से खत्म होती जा रही है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से चलारू का उपयोग कर इससे इंधन की खपत को कम करने के साथ-साथ औषधियों से भरे जंगलों को भी बचाया जा सकता है।

ऐसे बनाएं धुआं रहित कोयला

श्रवण कुमार ने कहा कि इस धुआं रहित कोयले को बनाने के लिए 200 लीटर पानी किसी ड्रम में लेकर उसमें 25 किलो चीड़ की पत्तियों को डालना पड़ेगा। चीड़ की पत्तियों को चिकनी मिट्टी के साथ जलाया जाएगा। इसमें चलारू और मिट्टी की मात्रा मौजूद रहेगी। इसे ढककर आधा जलाया जाएगा। छोटे-छोटे टुकड़े सूखने के बाद कोयले का रूप ले लेते हैं। इसके निर्माण के लिए चावल के पुआल को भी उपयोग में लाया जा सकता है।

श्रवण कुमार ने कहा कि इस कोयले से कम लागत पर अधिक ताप मिलता है और लकड़ी या कोयले की तुलना में पर्यावरण को कम हानि पहुंचती है। ईंधन के रूप में लकड़ी और कोयले के स्थान पर इन कोयलों का कई छोटे और बड़े उद्योगों में उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस कोयले की सबसे मुख्य खूबी स्मोक लेस होने के कारण पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं है।

इस प्रोजेक्ट को लेकर जब हिमाचल रेडक्रॉस सोसायटी की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की पत्नी डा. साधना ठाकुर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ग्रामीणों की यह पहल सराहनीय है। उन्होंने कहा कि जहां इससे इनकम होगी तो दूसरी ओर जंगलों को आग से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा इस बारे में सीएम जयराम ठाकुर से बात की जाएगा और इस दिशा में हर संभव कदम उठाए जाएंगें।