हिमाचल के रियल होरी शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की आज 23वीं पुण्यतिथि है. 23 साल पहले आज के ही दिन यानि 7 जुलाई 1999 को पालमपुर के वीर जवान कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे. कैप्टन विक्रम बत्रा के वलिदान को देश कभी भूला नहीं सकता. कैप्टन बत्रा को उनके अदम्य साहस और नेतृत्व प्रदर्शन के चलते उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से भी नवाजा गया.
कैप्टन बत्रा की 23वीं पुण्यतिथि पर आम आदमी पार्टी के संस्थापक एवं दिल्ली के सीएम अरविद केजरीवाल ने उन्हें याद करते हुए उनकी शहादत को नमन किया है. केजरीवाल ने अपने ट्विट करते हुए लिखा, ‘करगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और पराक्रम के साथ भारत मां की रक्षा करते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनके शहादत दिवस पर पूरा देश उनकी वीरता को नमन करते है. जय हिंद.’
करगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और पराक्रम के साथ भारत माँ की रक्षा करते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनके शहादत दिवस पर पूरा देश उनकी वीरता को नमन करता है। — Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 7, 2022 “>http:// करगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और पराक्रम के साथ भारत माँ की रक्षा करते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनके शहादत दिवस पर पूरा देश उनकी वीरता को नमन करता है। — Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 7, 2022
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बता दें कि शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म कांगड़ा जिला के पालमपुर के घुग्गर गांम में शिक्षक जी एल बत्रा और कमलकांता बक्षा के घर 14 सितंबर 1974 को हुआ था. विक्रम बत्रा ने सेना में जाने के लिए 1996 में सीडीएस की परीक्षा दी और सेवा चयन बोर्ड द्वारा उनका चयन हुआ. भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल होने के लिए उन्होंने अपने कॉलेज से ड्राप आउट किया.
दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली. सेना के इस जांबाज को शेरशाह के नाम से भी जाना जाता था. करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने 7 जुलाई 1999 को, प्वाइंट 4875 चोटी को कब्ज़े में लेने के लिए अभियान शुरू किया. इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी सौंपी गई. युद्ध के दौरान आमने-सामने की भीषण लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा ने पांच दुश्मन सैनिकों को पॉइंट ब्लैक रेंज में मार गिराया. इस दौरान वे दुश्मन स्नाइपर के निशाने पर आ गए और गंभीर रूप से जख्मी हो गए.
इस युद्ध में कैप्टन बत्रा ने सबसे आगे रहकर लगभग एक असंभव कार्य को पूरा कर दिखाया. उन्होंने जान की परवाह भी नहीं की और इस अभियान को दुश्मनों की भारी गोलीबारी में भी पूरा किया, लेकिन बुरी तरह घायल होने के कारण कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए. बाद में उनकी टीम ने प्वाइंट 4875 को वापस कब्जाने का लक्ष्य हासिल किया. आज भी प्वाइंट 4875 को बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है.