लाहौल-स्पीति के काजा से 12 किमी की दूरी पर स्थित "की मोनेस्ट्री" क़िले की शैली में बनी हुई है। माना जाता है कि ये मोनेस्ट्री करीब 1000 साल पुरानी है। इस मोनेस्ट्री में देश विदेश के विद्यार्थी पढ़ाई करने आते हैं। 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मोनेस्ट्री का सर्दियों में तापमान माइनस 40 डिग्री तक पहुंच जाता है। 1008 से 1064 में बनी इस मोनेस्ट्री को गैलंपा स्कूल के ग्रेट स्कॉलर जागी सीम सेरप जांग्यो ने बनाया था। इसका आर्किटेक्चर 14 वीं शताब्दी का है। मोनेस्ट्री में तिब्बत से लाई गई कई ऐतिहासिक पुस्तकें और पेंटिंग्स सहित कपड़े से बनीं पेंटिंग्स मौजूद हैं। यहां पर बुद्धा के पूर्वज के कई मोराला मौजूद हैं।
मोनेस्ट्री में बौद्ध धर्म की पढ़ाई व हिमाचल बोर्ड की तरफ से पढ़ाए जाने वाले विषय भी पढ़ाए जाते हैं। कहा जाता है कि इस मोनेस्ट्री पर 14 वीं सदी में सबसे पहले शाक्यों ने हमला किया और यहां से कई बहुमूल्य वस्तुएं लूटकर ले गए। इसके बाद 17 वीं सदी के पंचेन लामा के समय इस गोम्पा पर मंगोलों ने हमला किया। 1882 में लद्दाख और कुल्लू रियासतों की लड़ाई के दौरान इसे काफी नुकसान पहुंचाया गया। 1841 में डोगरा की लड़ाई के दौरान गुलाम खान और रहीम खान ने इस मोनेस्ट्री को खूब लुटा।
1975 का भीषण भूकंप भी इस मोनेस्ट्री का कुछ न बिगाड़ सका। देश विदेश के पर्यटकों के लिए यह आकर्षण का केंद्र है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित कई महान हस्तियां यहां आ चुकी हैं। बौद्ध धर्म गुरू दलाईलामा वर्ष 2000 में यहां पर कालचक्र प्रवचन दे चुके हैं। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के अलावा हिमाचल के कई मंत्री और पूर्व मंत्री भी मोनेस्ट्री के दर्शन कर चुके हैं।