प्रदेश में अधिकतर किसान बागवान बंदरों के आतंक के साए में जी रहे हैं और अपनी खेती-बाड़ी छोड़ चुके हैं। एक आंकलन के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में बंदरों की संख्या तीन लाख से ज्यादा है। हालांकि, अब वह विभाग दावा करता है कि बंदरों की नसबंदी और बंदरो को मारने के बाद ये संख्या तीन लाख से कम आ चुकी है।
हर चुनाव में राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में बंदरों की समस्या से निपटने का वायदा किया जाता है। लेकिन, ये वादे कागजों में ही रह जाते हैं। सरकार बदल जाती है और समस्या जस की तस रह जाती है। बंदरों की समस्या से निपटने के लिए अभी तक सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है।
हिमाचल में बंदरों की समस्या बहुत विकराल होती जा रही है। प्रदेश के लगभग 9 लाख किसान परिवार बंदरों की समस्या से जूझ रहे हैं। हर साल बंदरों की वजह से करीब 500 करोड़ की फसल का नुकसान होता है। जिसका न तो सरकार मुआवजा देती है और न कोई बीमा। किसानों का कहना है कि बन्दरों का आतंक इतना बढ़ गया है लोग खेती छोड़ दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं।
बंदरों की समस्या का मुद्दा चुनाव के समय हर राजनीतिक पार्टी का होता है लेकिन, सत्ता में आने के बाद सरकार इसको भुला देती है। हाल ही में प्रदेश में चुनाव हुए जिससे भारतीय जनता पार्टी को लोगों ने बहुमत दिया। भारतीय जनता पार्टी के मेनिफेस्टो में बंदरों की समस्या से निपटने के वादे किए गए थे।
वन मंत्री गोविंद ठाकुर ने कहा कि बंदरों की समस्या से सरकार पूरी तरह से अवगत है और इससे निपटने के लिए प्रयास किया जा रहा है। गोविंद ठाकुर ने कहा कि बन्दरों की नसबंदी करने का काम प्रदेश में तेज गति से चल रहा है। सरकार की मांग पर प्रदेश में 53 तहसीलों में बंदरों को कोर्ट से वर्मिन करने के आदेश दिए हैं लेकिन, 6 महीने बीत जाने पर भी अभी तक केवल 8-10 बंदर ही मारे गए हैं।