26 नवम्बर 2020 को देशभर के मजदूर राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने जा रहे हैं। इसी सिलसिले में मंगलवार को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और राष्ट्रीय फेडरेशनों के हिमाचल प्रदेश के संयुक्त मंच की बैठक सीटू कार्यालय शिमला में संपन्न हुई। इस दौरान संयुक्त मंच ने ऐलान किया है कि 26 नवंबर को देश के करोड़ों मजदूरों और कर्मचारियों द्वारा मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जाएगी। इस दिन हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योग और संस्थान बंद रहेंगे और मजदूर और कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। हड़ताल को सफल बनाने के लिए इससे पूर्व ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी फेडरेशनों की संयुक्त बैठकें होंगी।
ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के हिमाचल प्रदेश के संयोजक डॉ. कश्मीर ठाकुर, इंटक प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज और सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि 26 नवम्बर को राष्ट्रीय आह्वान पर हिमाचल प्रदेश के सभी उद्योगों और संस्थानों में हड़ताल रहेगी। इस दिन सभी जिला, ब्लॉकों और स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन होंगे। प्रदेश के लाखों मजदूर सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश सरकार की मजदूर और कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोलेंगे।
उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है और मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ साल के अंतराल में बने चबालिस श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों ओर किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों और कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है।
मजदूरों के चबालिस कानूनों को खत्म करने, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के साथ ही किसान विरोधी तीन कानूनों को पारित करने से यह साबित हो गया है कि ये सरकार मजदूर, कर्मचारी और किसान विरोधी है। यह सरकार लगातार गरीबों के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार के इन निर्णयों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर और किसान सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है।
आंगनबाड़ी, आशा और मिड डे मील योजना कर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। नई शिक्षा नीति से योजनकर्मी बर्बाद हो जाएंगे। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र और राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग और 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोज़गार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में 15 करोड़ मजदूरों की नौकरियां चली गयी हैं व वे बेरोज़गार हो गए हैं। मजदूरों को नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है।
उन्होंने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हज़ार रुपये घोषित किया जाए। केंद्र और राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए। किसान विरोधी हाल ही में पारित किए गए तीनों कानून को रद्द किया जाए व किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं। आंगनबाड़ी, मिड डे मील, आशा और अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए व नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए और राज्य सरकार द्वारा घोषित 275 रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए। मजदूरों की पेंशन तीन हज़ार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए। कॉन्ट्रैक्ट, फिक्स टर्म, आउटसोर्स और ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोज़गार दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। नई पेंशन नीति(एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन नीति(ओपीएस) बहाल की जाए।
बैंक, बीमा, BSNL, रक्षा, बिजली, परिवहन, पोस्टल, रेलवे, NTPS, NHPC, SJVNL, कोयला, बंदरगाहों, एयरपोर्टों, सीमेंट, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश और निजीकरण बन्द किया जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर और मालिक विरोधी धाराओं को वापस लिया जाए। चबालिस श्रम कानून खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं (लेबर कोड) बनाने का निर्णय वापस लिया जाए। सभी मजदूरों को ईपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, नियमित रोज़गार, पेंशन, दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस की कीमतें कम की जाएं। रेहड़ी, फड़ी तयबजारी क़े लिए स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए। सेवारत महिला कर्मचारियों को दो वर्ष की चाइल्ड केयर लीव दी जाए। सेवारत कर्मचारियों की पचास वर्ष की आयु और तेंतीस वर्ष की नौकरी के बाद जबरन रिटायर करना बंद किया जाए। सेवाकाल के दौरान मृत कर्मचारियों के आश्रितों को बिना शर्त करूणामूलक आधार पर नौकरी दी जाए।