प्रदेश हाईकोर्ट से वन भूमि पर अवैध कब्जा कर लगाए फलदार पौधों को ना काटने की गुहार पर कोई राहत नहीं मिली है। आवेदनकर्ताओं ने कोर्ट से पर्यावरण की दुहाई देते हुए सेब के हरे भरे पेड़ों को न काटने की गुहार लगाई थी। कोर्ट ने जब अवैध कब्जाधरियों से पूछा कि क्या उन्होंने खुद वन विभाग को जाकर यह बताया कि उन्होंने जिस वन भूमि पर कब्जा किया है, वो उसे स्वेच्छा से छोडऩा चाहते हैं?
इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर न मिलने पर कोर्ट ने कहा कि जब कोई भी कब्जाधारी स्वयं अपनी ईमानदारी दिखाने को आगे नहीं आया, तो इन अवैध कब्जों को हटाने का एकमात्र उपाय इनकी हैवी प्रूनिंग ही रह जाता है।
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कोर्ट के संज्ञान में यह बात भी आई कि जिन कब्जों को छुड़ा लिया गया था, वहां पर लोगों ने जल्दी से बढऩे वाले पौधों की ग्राफ्टिंग शुरू कर दी है और फिर से वन भूमि पर काबिज होने लगे हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने इन नए तथ्यों के मद्देनजर पेड़ों के कटान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार की लाचारी के कारण ही हाईकोर्ट को मात्र 13 परिवारों से वन भूमि को छुड़ाने के लिए एसआइटी का गठन करना पड़ा। तब जाकर अवैध कब्जों को छुड़ाया जा सका। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के पश्चात वन विभाग को अपने पिछले आदेशों की अनुपालना संबंधी ताजा स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए। मामले पर सुनवाई 20 जून को होगी।