<p>प्रदेश में 50 स्थानीय निकायों के चुनाव निबट जाने के बाद अब सबकी नजरें ग्रामीण संसद जो बहुत बड़ा चुनाव माना जाता है, जिसमें हर व्यक्ति कहीं न कहीं जुड़ा होता है, पर टिक गई है। इन दिनों पूरे प्रदेश के गांवों में चुनावी ब्यार बह रही है। महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण होने के चलते वह भी चूल्हा चौका व खेती बाड़ी का काम छोड़ कर वोटर के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए पसीना बहा रही है।</p>
<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>महिलाएं 50 प्रतिशत से ज्यादाः</strong></span></p>
<p>पंचायती राज संस्थानों के चुनावों में इस बार जो रोचकता सामने आ रही है उसमें यह सामने आया है 50 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद महिला उम्मीदवार सामान्य वार्डों से भी मैदान में आ गई हैं क्योंकि हर हालत में चुनाव लड़ना है तो ऐसा करना मजबूरी हो गया है। ऐसे में यह महिला आरक्षण 55 प्रतिशत से भी उपर माना जा रहा है।</p>
<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>बडी तादाद में रिटायरी भी उतरेः</strong></span></p>
<p>दूसरी ओर इन चुनावों में बड़ी तादाद में रिटायरी कर्मचारी अधिकारी मैदान में आ गए है। इनमें कई तो बड़े अधिकारी व अच्छे पदों पर रहे हैं उन्हें लगता है कि नौकरी में रहते हुए जो हमने किया है अब उसे भुनाया जाए, हालांकि रिटायरियों के मैदान में आ जाने से चुनाव को अपना एकाधिकार व प्रोफेशन मानने वाले प्रतिनिधियों को रिटारियों का चुनाव लड़ना अच्छा नहीं लग रहा है। लोगों व इन रिटायरी विरोधियों की बातों से लगता है कि चुनाव जीतना एक रोजगार है ऐसे में इनका कहना है कि यह काम तो हम बेरोजगारों को छोड़ देना चाहिए, इन्हें तो जमकर पेंशन भी मिलती है और पैसा भी इनके पास खूब है तो हमारे हक पर डाका डालने क्यों आ गए। उम्र हो जाने के बाद सरकार ने रिटायर कर दिया है तो अब आराम करना चाहिए था, जनता के सेवक बनने का कैसा शौक चढ़ गया है।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>प्रोफेशनल उम्मीदवार पद बदलकर मैदान मेंः</strong></span></p>
<p>किसी निवर्तमान प्रधान की पंचायत महिला या दूसरे वर्ग के आरक्षित हो गई तो वह घर बैठने की बजाय उपप्रधान या बीडीसी के लिए खड़ा हो गया है। किसी आरक्षित पंचायत को इस बार ओपन कर दिया तो आरक्षित निवर्तमान प्रधान ने भी यही तरीका अपनाया है। महिला के लिए आरक्षित हुई तो अपनी पत्नी या बहू बेटी को मैदान में उतार दिया किसी तीसरे को मौका नहीं दिया, यानि पद के बिना नहीं रहना चाहते क्योंकि पैसा कमाने का साधन कई प्रतिनिधि इसे मानते हैं, इस कारण से बाहर नहीं रहना है चाहे कुछ भी हो जाए। ऐसे उम्मीदवार हजारों में हैं जो हर हालत में चुनाव लड़ते हैं भले ही पद पहले से छोटा ही क्यों न हो। कई निवर्तमान प्रधान पंचायत के आरक्षित हो जाने के बाद उपप्रधान के लिए उतर गए क्योंकि उपप्रधान के पद के लिए कोई आरक्षण नहीं हैं। अब इसे चश्का कहें कि कमाई का साधन। कोई तो बीच का राज है जिसे जनता जानना चाहती है।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>पत्रकार भी कूदे मैदानः </strong></span></p>
<p>मीडिया के लोग भी चुनावी चश्के से बच नहीं सके हैं। पंडोह पंचायत में बालक राम और स्योग में देवी राम चुनाव मैदान में है। बल्ह की नलसर पंचायत से हरीश कौंडल लड़ रहे हैं। पधर क्षेत्र में उरला निवासी के के भोज व कोटली निवासी अरूण कुमार भी बीडीसी के लिए उतरे हुए हैं। और भी कई चेहरे हैं। कुल्लू नगर परिषद में तो पत्रकार शालिनी नेगी ने जीत भी हासिल कर ली है। ऐसे में यह चुनाव कम रोचक नहीं है।</p>
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