सेब और नाशपाती के बाद अब अनार के बगीचे भी कैंकर रोग की चपेट में आ गए हैं। कैंकर रोग से कई पेड़ सूखने लगे हैं। ऐसे में अनार उत्पादकों को फसल की चिंता सताने लगी है। गौरतलब है कि जिले में लोअर बेल्ट में अनार बड़े पैमाने पर उगाए जा रहे हैं। कुछ सालों से अनार के दाम मंडियों में बेहतर मिल रहे हैं। ऐसे में लोअर बेल्ट के बागवान सेब के विकल्प के तौर पर अनार की खेती को तरजीह दे रहे हैं। जिले में करीब 1200 हेक्टेयर भूमि में अनार की पैदावार हो रही है।
जिले के निचले इलाके गड़सा, हुरला, रूआडू, थरास, बजौरा, कलैहली, जिया और खराहल के निचले क्षेत्रों में अनार के बगीचे लहलहाने लगे हैं लेकिन अब अनार के पेड़ों पर भी कैंकर रोग ने हमला बोला दिया है। बताया जा रहा है कि कई बागवानों ने बागवानी विभाग की सलाह के बगैर महाराष्टृ से सिंधूरी किस्म के अनार के पौधों को लाकर रोपित किया। जानकारी के मुताबिक इन पौधों में वायरस था, जिसके कारण कई क्षेत्रों में कैंकर और अन्य बीमारी अनार पर पनप रही है। बीमारी के प्रकोप से कई पौधे सूखने लगे हैं।
घाटी के अनार उत्पादक महेश शर्मा, अमित ठाकुर, दुष्यंत ठाकुर, ओमप्रकाश, कैलाश ठाकुर, सतीश महंत, ज्ञान ठाकुर, चमन ठाकुर आदि ने कहा कि सेब और नाशपाती के पौधों पर तो कैंकर का कहर होता था, लेकिन अब अनार के पौधों पर भी इस बीमारी ने हमला बोल दिया है। ऐसे में बीमारी की जद में आने से कई पौधे सूखने लगे हैं। वहीं, बागवानी विभाग उपनिदेशक आरके शर्मा ने कहा कि बागवानों को उचित तरीके से पौधों को संतुलित खाद और अनुमोदित किस्मों का चयन कर ही क्षेत्र में अनार के पौधों को रोपित करना चाहिए। कैंकर वाली सूखी टहनियों को काटकर जला देना चाहिए। रोग से निजात पाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइट का छिड़काव पत्तों के झड़ने पर करना चाहिए।