<p>रेलवे के लिए विश्व धरोहर कालका-शिमला रेल ट्रैक को निज़ी हाथों में सौंपने की तैयारी चल रही है। घाटे में चल रहे शिमला-कालका रेल मार्ग सहित केंद्र सरकार की मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना के तहत देश के चार क्षेत्रों से गुजरने वाले नैरोगेज, 244 किलोमीटर रूट का निजीकरण किए जाने का प्रस्ताव है। इनमें अंबाला रेल मंडल का कालका-शिमला रेल ट्रैक, बंगाल का सिलीगुड़ी-दार्जलिंग, तामिलनाडु का नीलगिरी और महाराष्ट्र का नेरल माथरान ट्रैक शामिल है। प्रकृति की गोद में बसे ये चारों पर्यटन स्थल आकर्षण का केन्द्र हैं।</p>
<p><img alt=”” src=”http://www.samacharfirst.com/media/gallery/ass_2021_08_27_122502.jpg ” /></p>
<p>गौरतलब है कि ब्रितानियां हकूमत ने कालका-शिमला रेल ट्रैक पर करीब 117 साल पहले दो फीट छह इंच की नैरो गेज लेन पर ट्रेन चलाई थी। कालका-शिमला रेलमार्ग पर 861 पुल बने हुए हैं। जिसमे 100 से ज़्यादा सुरंग हैं जिनमें बड़ोग सुरंग सबसे लंबी है। इसकी लंबाई 1143.61 मीटर है। यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाइजेशन (यूनेस्को) ने जुलाई 2008 में शिमला-कालका को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया था।</p>
<p>मोटे तौर पर बात करें तो 1903 से चल रही शिमला कालका पटरी पर सालाना खर्च करीब 35 करोड़ है, जबकि आमदनी 10 करोड़ के आसपास ही है। अब सवाल ये उठाता है कि यदि शिमला-कालका ट्रैन अब घाटे में है तो निज़ी हाथों में जाने से लाभ में कैसे आएगी?</p>
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