हिमाचल प्रदेश में अंग्रेजी हकुमत में रेल नेटवर्क का जो जाल बिछा था आज दिन तक उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हो सकी है। मंडी जिला का जोगिंद्रनगर वो इलाका है जहां तक अंग्रेजों ने रेल लाइन को बिछाया था। लेकिन आजादी के बाद देश को चलाने वाले हुकमरानों ने इसके विस्तार की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण दो रेल लाइनों के लिए बजट का प्रावधान हो गया है लेकिन एक भूमि अधिग्रहण पर अटकी है तो दूसरी सर्वे पर। एक बार फिर केंद्र सरकार के बजट से इनमें तेजी आने की उम्मीद जगी है। अब 1 फरवरी पर सबकी टकटकी लगी है जब आम बजट के साथ-साथ रेल बजट भी पेश किया जाएगा। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के रेल बजट में प्रदेश को क्या खास मिलेगा।
वहीं, अगर भानुपल्ली-बिलासपुर-मंडी-लेह रेल लाइन की बात करें तो इसकी भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भारत सरकार ने शुरू कर दी है जो 2020 तक पूरी होने की उम्मीद है। सांसद राम स्वरूप शर्मा के अनुसार इस रेल लाइन के निर्माण पर 50 हजार करोड़ से भी अधिक का खर्च आएगा।
दूसरी तरफ पठानकोट-जोगिंद्रनगर-मंडी रेल लाइन के सर्वे का कार्य अभी जारी है। सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण इन दोनों रेल लाइनों पर भारत सरकार के रेल, रक्षा और वित्त मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं।
वहीं, दूसरी तरफ चीन की बात करें तो लेह से सटे इलाकों में चीन ने अपने रेल नेटवर्क का विस्तार कर दिया है जबकि भारत इस मामले में अभी बहुत ज्यादा पीछे है। सुरक्षा के बाद अगर पर्यटन की बात करें तो उस लिहाज से भी रेल नेटवर्क काफी महत्वपूर्ण है।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुल्लू-मनाली पर्यटन स्थल आज तक रेल नेटवर्क के साथ नहीं जुड़ सके हैं। अगर मनाली होते हुए लेह तक रेल लाइन पहुंच जाती है तो इससे न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यहां के कारोबार को भी नए पंख लगेंगे।