<p>शिमला में बंदर सबसे बड़ी समस्या बन चुके है। बंदरों के आतंक से लोगों का घरों से बाहर निकलना मुहाल हो गया है। बंदरों के आतंक से परेशान बुजुर्ग खन्ना दंपति को सामने आना पड़ा है। उन्होंने बंदरों की समस्या से निज़ात दिलाने के लिए बंदर हटाओ हमें बचाओ" हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है।</p>
<p>जिसको की सीएम, राज्यपाल, मेयर को सौंपा जाएगा। ताकि वह इसका स्थाई समाधान निकाल सकें। जिसके तहत शिमला के लोंगो से हस्ताक्षर लिए जा रहे है।</p>
<p>अनिता खन्ना के मुताबिक सिंतबर माह में ही अकेले आईजीएमसी में 104 मामले बंदरो के काटने के पहुंचे जबकि 61 मामले कुत्तों के काटने के पहुंचे। लेकिन सरकार प्रशासन अपना अपना पल्ला झाड़कर एक दूसरे के सिर पर बला टाल देते है।</p>
<p>राज्य की 3000 से ज्यादा पंचायतों में से अधिकांश में किसानों की फसलों को बंदर नुकसान पहुंचा रहे हैं। खेती बचाओ संघर्ष समिति के मुताबिक हर साल करीब पांच सौ करोड़ की फसल बर्बाद हो रही है। जबकि फसलों की रखवाली के लिए करीब 1600 करोड़ सालाना खर्च होता है। एक अनुमान के मुताबिक़ हिमाचल में बंदरों की संख्या लाखों में है लेकिन सरकार और वन विभाग नसबंदी के नाम पर लाखों खर्च कर रहा है लेकिन नतीज़ा शून्य है।</p>
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