<p>यूं तो कोई भी कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद अपने घर आ जाता है और अपनी घर गृहस्थी पर ज्यादा ध्यान देता है। जिस पर वह नौकरी के दौरान नहीं दे पाया था, लेकिन पालमपुर के उश्चर हाईस्कूल में एक शिक्षक ऐसे भी रहे जो सेवानिवृत्त के बाद भी चार साल दो माह तक का स्कूल में पढ़ाते रहे। विभाग ने सरकारी नियमों के मुताबिक उन्हें 31 मार्च 2015 को संस्कृत और हिंदी के शिक्षक अशोक ठाकुर को सेवानिवृत्त किया। लेकिन इन्होंने अगले दिन से ही उसी स्कूल के बच्चों को निशुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया।</p>
<p>अशोक ठाकुर हर दिन आठ पीरियड लेते थे। स्कूली बच्चों को पढ़ाने में उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो, इसके लिए उन्होंने बाकायदा हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड से परमिशन भी ले रखी थी। अशोक ठाकुर कहते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद भी वह अभी तक एक भी दिन कक्षाएं लेने के लिए लेट नहीं पहुंचे। लेकिन अब बरसात की छुट्टियों के बाद अशोक ठाकुर ने स्कूल में ना पढ़ाने का निर्णय लिया है क्योंकि अब उम्र उनको अनुमति नहीं दे रही है।</p>
<p>33 साल शिक्षक के रूप में सेवाएं देने के बाद उन्होंने संकल्प दिया था कि पूरी उम्र उन्होंने सरकार से वेतन लेकर शिक्षा दी है। लेकिन रिटायरमेंट के बाद बच्चों को शिक्षा देने के लिए पैसे नहीं लेंगे और निशुल्क शिक्षा बच्चों को देते रहेंगे। उन्होंने बताया कि वे स्वामी विवेकानंद का अपना आदर्श मानते हैं और उनकी शिक्षाओं के आधार पर जीवन जी रहे हैं। बच्चों को पढ़ाने के अलावा अशोक ठाकुर निर्धन छात्रों की हर वर्ष आर्थिक रूप से मदद करते हैं। इसके अलावा पर्यावरण को हरा भरा बनाए रखने के लिए हर साल सौ से अधिक वृक्ष लगाते हैं।</p>
<p>जहां कई स्कूलों में शिक्षक अक्सर बहाने बनाकर स्कूल से भागने का बहाना बनाते रहते हैं, वहीं अशोक ठाकुर रिटायरमेंट के बाद भी स्कूल में एक दिन भी लेट नहीं हुए हैं। वे बताते हैं कि वे अपने सारे गांव स्कूल में पडऩे वाली छुट्टियों में निपटाते हैं। अपने गांव जो कि स्कूल से 125 किलोमीटर दूर है वे वहां भी काम-काज देखने के लिए छुट्टियों में ही जाया करते हैं। गांव वाले भी अशोक ठाकुर के जज्बे को सलाम करते हैं और उन्हें किसी प्रकार की जरूरत पड़ने पर हर संभव सहायता करते हैं।</p>
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<p>अशोक ठाकुर को बेहतरीन शैक्षणिक सेवाओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में मिलने वाले हिमाचल के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार राज्य शिक्षक अवार्ड से साल 2014 में सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें राज्यपाल की ओर से प्रदान किया गया था। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2004 में स्थानीय विधायक भी सम्मानित कर चुके हैं। साल 2014 अशोक ठाकुर को उनकी सेवाओं के लिए पंचायत, स्कूल मैनेजमेंट कमेटी और एक स्थानीय क्लब की ओर से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि मेरे इस समर्पण के लिए मेरी पत्नी मीनाक्षी ठाकुर का भी सहयोग रहा है उन्होंने मुझसे कभी भी कोई शिकायत नहीं की। हालांकि कई बार स्कूल में समय ज्यादा देने की वजह से में अपने परिवार को अधिक समय नहीं दे पाया। बाबजूद इसके बच्चों को अपना समझकर जीवन उनको समर्पित किया।</p>
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