एक माह पूर्व लगातार बारिश के बाद भूस्खलन, बादल फटने और अचानक आई बाढ़ ने राज्य के समक्ष चुनौतियों का पहाड़ खड़ा कर दिया। राज्य में ऐसी विकट स्थिति से निपटने के लिए अप्रत्याशित प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी।
मुख्यमंत्री ने स्थिति की गंभीरता के अनुरूप कार्य योजना तैयार कर फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकालने को प्राथमिकता देते हुए पूरे आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस बल, होम गार्ड, फायर ब्रिगेड, जिला प्रशासन और जनता के प्रतिनिधियों को बचाव कार्य के लिए तैनात कर दिया। उन्होंने स्वयं दिन-रात स्थिति पर नजर बनाए रखी। आपदा भरे अगले कुछ दिन संकट के मध्य बचाव दलों के अदमनीय साहस के गवाह बने। बचाव अभियान के नायकों ने एक सप्ताह से भी कम समय में लगभग 75,000 पर्यटकों को बचाने का चुनौतीपूर्ण कार्य पूर्ण कर नया इतिहास रचा।
हर बचाव अभियान में प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षित निकालने के लिए बचावकर्मियों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी। बचाव अभियानों की सफलता से यह भी दृष्टिगोचर है कि हम एक ऐसी अनूठी संस्कृति से संबंध रखते हैं जहां मानवता की रक्षा के लिए लोग अपनी जान न्योछावर करने को सदैव तत्पर रहते हैं।
मिशन चंद्रताल: 14,000 फुट की ऊंचाई पर 4 फुट बर्फ में फंसे 300 से अधिक लोगों को पांच दिनों की कड़ी मेहनत के उपरांत सुरक्षित निकाला. इस अभियान को हिमाचल के इतिहास में सबसे कठिन और साहसी बचाव अभियान के रूप में याद किया जाएगा।
चंद्रताल में 300 से अधिक लोग काजा से लगभग 86 किलोमीटर दूर 14,000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर 4 फुट से अधिक बर्फ में 9 जुलाई को फंस गए थे। खराब मौसम के चलते हवाई मार्ग से बचाव अभियान में सफलता नहीं मिल पा रही थी।
विपरीत परिस्थितियों से यह साफ हो गया था कि बचाव कार्य में कई दिन लग सकते हैं। सरकार ने सबसे पहले यह सुनिश्चित किया कि फंसे हुए लोगों के पास रहने की उचित व्यवस्था, चिकित्सीय सहायता सहित अन्य आवश्यक उपकरण उपलब्ध हों। शुरुआत में एक नाबालिग सहित सात लोगों को एक हेलिकॉप्टर द्वारा चंद्रताल से सुरक्षित लाया गया।
इसके बाद, राज्य सरकार ने पुलिस, आईटीबीपी, आपदा मित्र स्वयंसेवी के दलों और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को लोगों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया। अगले कुछ दिनों में खराब मौसम का सामना करते हुए बचाव दाल ने कड़ी मेहनत और अद्भुत साहस का परिचय देते हुए संपर्क सड़क को बहाल कर दिया। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और मुख्य संसदीय सचिव संजय अवस्थी ने अभियान के अंतिम चरण तक बचाव दल का नेतृत्व किया।
उन्होंने चंद्रताल पहुंच कर यह सुनिश्चित किया प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षित वापसी हो। उल्लेखनीय है कि अभियान को सफल अंजाम तक पहुंचाने के पश्चात ही वह स्वयं सबसे आखिर में चन्द्रताल से लौटे। ऑपरेशन के दौरान बचाव दल को सूचित किया गया कि बाटल में 50 लोग फंसे हुए हैं।
सन्देश मिलते ही उन्हें निकालने की पहल की गई और सभी को सुरक्षित काजा लाया गया। बाटल में अन्य छह लोगों के फंसे होने की सूचना पर त्वरित कार्यवाही करते हुए एक बचाव दल की मदद से उन्हें सुरक्षित लोसर लाया गया। चंद्रताल में बचाव कार्य पांच दिनों तक चला और आखिरकार 13 जुलाई को सरकार ने उस वक्त राहत की सांस ली जब सभी फंसे हुए लोग सुरक्षित स्थानों पर लाये गए।
एयरलिफ्ट कर सुरक्षित आश्रयस्थल पहुंचाया
किन्नौर में सांगला और कड़छम को जोड़ने वाली सड़क के कुछ हिस्से इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे कि यह प्रतीत हो रहा था कि वहां कभी सड़क थी ही नहीं। इसके कारण 9 जुलाई को सांगला में लगभग 125 पर्यटक फंस गए। बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था और भयानक बारिश के दौर की अभी शुरुआत ही थी।
सरकार ने भारतीय वायु सेना की मदद से बचाव अभियान आरम्भ किया। हवाई मार्ग से बचाव के लिए कई प्रयास किये गये लेकिन खराब मौसम के चलते सभी असफल रहे। इस बीच अधिकारियों ने सांगला में लोगों को एक सुरक्षित स्थान पर ठहराने की व्यवस्था की और सुनिश्चित किया कि उनके पास आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त भण्डारण हो।
चार दिन बाद यानी कि 12 जुलाई को जैसे ही मौसम थोड़ा अनुकूल हुआ प्रदेश सरकार ने वायुसेना की मदद से सभी लोगों को सुरक्षित आश्रयस्थल पहुंचाने के लिए एयरलिफ्ट किया।
एक अन्य घटना में, 10 जुलाई को सिरमौर के नाहन में गिरि नदी के तट पर पांच लोग फंस गए थे। 24 घंटों के लम्बे इंतजार के बाद 11 जुलाई को इन्हें भारतीय सेना के हेलीकाप्टर द्वारा सुरक्षित निकाला गया। इस दौरान इन लोगों की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन चौबीस घंटे सतर्क और उनसे संपर्क साधे रहा। ड्रोन की मदद से उन्हें चिकित्सा, भोजन और अन्य राहत सामग्री भी प्रदान की गयी।
9 जुलाई से 12 जुलाई, 2023 तक राज्य में हेलीकॉप्टर के उपयोग से लगभग 150 लोगों को बचाया गया।
हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक सुंदरता और आतिथ्य सत्कार न केवल देश बल्कि दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। हर साल प्रदेश में करोड़ों की संख्या में पर्यटक आते हैं। दुर्भाग्यवश, जब राज्य में आपदा आई तो पूरे राज्य में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक भी मौजूद थे, जोकि विभिन्न स्थानों में फंस चुके थे।
इन लोगों की सुरक्षा के दृष्टिगत भारत में स्थित सम्बन्धित देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि चिंता व्यक्त कर सकते थे जिससे कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल व देश की छवि को नुकसान पहुंचता। इससे राज्य के पर्यटन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। कठिन परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश सरकार ने सहायता प्रदान कर इन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया।
हिमाचल के इन प्रयासों को दुनिया भर में सराहा भी गया। विश्व बैंक ने आपदा में प्रभावी कदम उठाने के लिए मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के अनुकरणीय प्रयासों की सराहना की। विश्व बैंक ने मुख्यमंत्री द्वारा बचाव कार्यों की व्यक्तिगत निगरानी का उदहारण देते हुए उनकी असाधारण नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा भी की।
मार्मिक अवधारणा कि कसौटी पर पार
आपदा के बीच सरकार को केरल से सम्बन्ध रखने वाले चिकित्सा क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे 27 छात्रों के बारे में लाहौल-स्पीति के कोकसर में फंसे होने की सूचना प्राप्त हुई। इन छात्रों को मौसम की भीषण स्थिति से निपटने के अलावा पैसे की कमी का भी सामना करना पड़ रहा था। सरकार ने बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी और सभी को मनाली लाया गया।
उनके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था की गई। जैसे ही मौसम सामान्य हुआ, सड़क यातायात के लिए बहाल की गयी और प्रशासन द्वारा छात्रों को जिला मंडी भेजा गया। वहां से वॉल्वो बस के माध्यम से उन्हें दिल्ली पहुंचाया। इस दौरान सरकार ने बच्चों का पूरा ख्याल रखा, उनके भोजन, आवास और यात्रा का खर्च वहन किया और यह सुनिश्चित किया कि वे सुरक्षित केरल पहुंचें।
एक सप्ताह की अवधि में इसी तरह के कई साहसिक बचाव कार्य देखने को मिले, जिसमें चंबा जिले में मणिमहेश और कुल्लू के श्रीखंड महादेव की यात्रा पर गए श्रद्धालु, कुल्लू स्थित पिन पार्वती ट्रेक और अन्य ट्रैकिंग मार्गों पर गए साहसिक पर्यटन के शौकीन और किन्नौर जिले के कारा दर्रा और विभिन्न मार्गों पर गए ट्रैकर्स को बचाने के अभियान शामिल थे। इसके अलावा आलू ग्राउंड, चुरुडू, हनुमानीबाग, सरवरी खड्ड, चंडीगर बिहाल, पागल नाला, सिस्सू, पंडोह, नगवाईं और राज्य के विभिन्न जिलों के अन्य हिस्सों से हज़ारों लोगों को बचाया गया।
इस अवधि के दौरान ऐसे अनेक बचाव अभियान भी देखने को मिले, जिनमें बचाव दलों ने अपनी जान जोखिम में डालकर सफलता हासिल की। इन बहादुर चेहरों में वायुसेना, थलसेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल, सीमा सड़क संगठन, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस, होम गार्ड, फायर ब्रिगेड, अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान, स्थानीय लोग, जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार के मंत्री एवं विधायक शामिल हैं। इस वर्ष जब हम 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे तो आइए इन बहादुर बचाव कर्मियों को भी उनकी निःस्वार्थ सेवा के लिए एक साथ सलामी देें।
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