पूरे देश और प्रदेश के सरकारी संरक्षण में निजी शिक्षण संस्थान शिक्षा को बाजार की वस्तु बनाने में त्तपर है। हाल ही में एपीजी और एमबीयू में लगभग पांच लाख फर्जी डिग्रीयों का मामला जब संज्ञान में आया है। जो निजी उच्च शिक्षा नियामक आयोग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा करता है। 2011 से नियामक आयोग की जिम्मेवारी है कि निजी शिक्षण संस्थानों में किसी भी नियमो का उल्लंघन हो रहा है। उसके खिलाफ कार्रवाई करके दंडित करने की लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि नियामक आयोग ने पिछले सात सालों में किसी भी निजी संस्थान का निरीक्षण नहीं किया है।
यह पूरा काम राज्य सरकार के संरक्षण में हो रहा है। क्योंकि सरकारें शिक्षा के प्रति संजिदा ही नहीं है। प्रदेश का एकमात्र सरकारी विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय है। जिसे भी लगातार प्रदेश सरकार खत्म करने की कोशिश कर रही हैं। पिछले लम्बे समय से निजी शिक्षण संस्थानों में फर्जी डिग्रीयों का गोरख धंधा चल रहा था। लेकिन प्रदेश निजी शैक्षणिक संस्थान नियामक आयोग इस बात से अनभिज्ञ था। यह मामला भी तब सामने आया जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को लिखित में शिकायत दी गई।
उसके बाद 31 दिसंबर 2019 को यूजीसी ने प्रदेश सरकार को सूचित कर दिया था। लेकिन दो महीनों में भी न प्रदेश सरकार ने और न नियामक आयोग ने इस बात का संज्ञान लिया। अभी तक भी एमबीयू और एपीजी में फर्जी डिग्री मामले की जांच शुरू नहीं हुई है। सरकार खुद सरकारी शिक्षा के बजाय निजी शिक्षा को बढ़ावा दे रही है। लेकिन इस तरह के मामले सरकारों की ही गलती है। हम देखते है कि निजी शैक्षणिक संस्थान भी सरकारों के चहेतो के ही होते है और चुनावो में वो चहेते प्रचार में भी खूब मदद करते हैं।
जहां सरकार की जिम्मेवारी बनती है। मुफ्त शिक्षा मुहैया कराने की वहीं, सरकार निजीकरण को दिन-प्रति-दिन बढ़ावा दे रही हैं। एसएफआई मांग करती है कि इस मामले की न्यायिक जांच करवाई जाए और दोषियों को कड़ी सजा दी जाए। नियामक आयोग निजी उच्च शिक्षा संस्थानों का समय-समय पर निरीक्षण करे। आज नियामक आयोग कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया गया और आयोग के दो सदस्यों को ज्ञापन भी सौंपा गया और साथ ही यह मांग की गई कि अगर इन मुद्दों पर आने वाले समय के अंदर उचित कार्रवाई नहीं कि गई तो एसएफआई प्रदेशव्यापी आंदोलन के अंदर जाएगी जिसकी जिम्मेवार प्रदेश सरकार होगी।