पहाड़ों की रानी शिमला के कई परिवार मौत के साए में जी रहे हैं। ब्रिटिश शासनकाल के समय में बसाई गई राजधानी शिमला की अधिकांश इमारतें अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं ओर जर्जर हालत में है। कई भवन तो ऐसे हैं जो गिरने की कगार पर है। लेकिन, लोग उन्हें खाली नहीं कर रहे हैं। शिमला शहर में 250 भवन ऐसे हैं जिन्हें नगर निगम ने असुरक्षित तो घोषित कर दिया है। लेकिन, इन भवनों को तोड़ने या खाली करवाने के लिए किसी तरह की कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा रही है । शायद नगर निगम शिमला किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहा है।
नगर निगम शिमला के क्षेत्र में सबसे अधिक असुरक्षित भवन लोअर बाजार, मिडल बाजार, कृष्णा नगर में है। सबसे खतरे की बात ये है कि इन भवनों में व्यावसायिक केंद्र है और भीड़ भाड़ वाले इलाकों में है। ऐसे में यदि कोई हादसा होता है तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
हर साल बरसात में शिमला में असुरक्षित भवन तास के पत्तों की तरह ढह जाते हैं। संजौली ढली बाइपास पर पिछले चार साल से बहुमंजिला भवनों के गिरने का सिलसिला जारी है।
लक्कड़ बाजार सिंकिंग जोन में करीब 15 साल पहले कई भवन तहत-नहस हुए थे। लक्कड़ बाजार बस स्टैंड के समीप ईदगाह में भूस्खलन के कारण ऐसी आपदा आई थी। हादसे होने के बाद भी नगर निगम की नींद नही टूट रही है ! नगर निगम भवनों को असुरक्षित घोषित कर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। निगम खानापूर्ति के लिए भवन मालिको को नोटिस जारी करता है।
वहीं, नगर निगम मेयर कुसुम सदरेट का कहना है कि निगम ने ऐसे भवनों की सूची तैयार की है, जो गिरने के कगार पर है और कभी भी बड़े हादसे को अंजाम दे सकते हैं। इन भवनों में रहने वाले लोगों को मकान खाली करने के आदेश भी दिए हैं। लेकिन, मकान मालिक और किराएदारों में आपसी झगड़ों के चलते इन मकानों को खाली नहीं किया जा रहा है।