2017-18 के वित्त वर्ष में निदेशक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला द्वारा 4.67 करोड़ के घोटाले का ऑडिट रिपोर्ट में बहुत बड़ा खुलासा हुआ है। आर.टी.आई. कार्यकर्ता बृजलाल ने इस मामले में सी.बी.आई. से जांच और एफ.आई.आर. दर्ज करने के बारे में शिकायत की है। उन्होंने कहा है कि भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रहा है जबकि यह संस्थान भारत के अग्रणी संस्थानों में से प्रमुख है और सारे संसार के बुद्धिजीवी विशेषक्ष यहां उच्च अध्ययन के लिए आते हैं और जन साधारण इस संस्था में भ्रष्टाचार की कल्पना भी नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा है कि भ्रष्ट तंत्र इस संथान से 4,66,92000 रूपये बड़ी आसानी से डकार गये और नियमानुसार महालेखाकार कार्यालय शिमला द्वारा इसका लेखा परीक्षण भी हुआ और ऑडिट पैरा भी बने परंतु खेद है कि नदेशक महोदय किसी की कार्यवाही करने की अपेक्षा हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं। इस घोटाले में उनकी भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि निदेशक के इस कृत्य से जहां यह संस्थान शर्मसार हुआ है। वहीं इस भ्रष्टाचार से इस संस्थान की गरिमा और छवि भी कुछेक संस्थान के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा खराब की गई है। इसकी क्षतिपूर्ति करना असंभव है। जिसके चलते निदेशक और निदेशक के अंतर्गत आने वाले उन सभी भ्रष्ट अधिकारियों के विरूद्ध कठोर कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिये। साथ ही इस भ्रष्टाचार में संलिप्त भ्रष्ट अधिकारियों की चल-अचल संपत्ति की भी सी.बी.आई. जांच करें। क्योंकि ऑडिट विभाग द्वारा किये गए संस्थान के ऑडिट रिपोर्ट 2017-2018 में यह लाखों करोड़ों की हेरा-फेरी निम्नलिखित रूप से दर्शायी गई है :-
1.पैरा नं०1 एडवांस स्टडी बैंक एक्ट में घपला 52 लाख
2.पैरा नं०2 पुस्तक खरीद में अनियमितता 2 करोड 3 लाख 33 हजार
3.पैरा नं०3 सी.पी.डब्ल्यू.डी. को अग्रिम अदायगी 97 लाख
4.पैरा नं०4 कार खरीद में अनियमितता 14 लाख 66 हजार
5.पैरा नं०5 दवाई खरीद में अनियमितता 4 लाख 84 हजार
6.पैरा नं०6 पानी खरीद के नाम पर अनियमितता 3 लाख 94 हजार
7.पैरा नं०7 ब्याज व जुर्माना की अनाधिकृत अदायगी 3 लाख 82 हजार
8.पैरा नं०8 कर्मचारी लाइसैंस में घोटाला 53 हजार
9.पैरा नं०9 हवाई जहाज टिकट में घोटाला 34 हजार
10.पैरा नं०12 लेखा परीक्षण फीस में अनियमितता 66 हजार
इसके अतिरिक्त पैरा नं० 10 और 11 में कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति बिना आर. एंड पी. रूल्स से की गई है और निदेशक द्वारा की गई इन पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्तियां भी लेखा परीक्षण विभाग द्वारा कई बड़े सवालों के घेरे में रखी गई है। जिससे यह साबित होता है कि विभाग द्वारा पदों को भरने के लिए भी भ्रष्टाचार की सीमाओं को लांघा है।
यह सारा भ्रष्टाचार निदेशक द्वारा फाईल में ही बन्द कर रखा है जिसकी सूचना मैंने सूचना के अधिकार 2005 के अंतर्गत ली है जिसमें यह सभी घोटाले और भ्रष्टाचार का संक्षिप्त विवरण ऑडिट विभाग द्वारा पैरा लगाकर दिया गया है। जिसके चलते सी.बी.आई. के माध्यम से सख्त कार्रवाई करने और दोषियों को सलाखों के पीछे डालने की मांग की जाती है ताकि अन्य अधिकारियों को भी इस भ्रष्टाचार से सबक मिल सके। इसके लिए मैं सदैव सी.बी.आई. के अधिकारियों का आभारी रहूंगा। 60 दिन बाद इस पत्र पर की गई जांच की कार्यवाही आर.टी.आई. के माध्यम से ली जाएगी।