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शिमला: छात्र अभिभावक मंच की मांग, जिला मुख्यालयों की इंस्पेक्शन रिपोर्ट की जाए सार्वजनिक

पी. चंद |

छात्र अभिभावक मंच ने निजी स्कूलों की मनमानी, लूट और भारी फीसों के खिलाफ़ शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों द्वारा 11 अप्रैल तक प्रदेश के जिला मुख्यालयों में की गई इंस्पेक्शन की रिपोर्ट को तुरन्त सार्वजनिक करने की मांग की है। मंच ने कहा है कि केवल इंस्पेक्शन से बात नहीं बनेगी। मंच का आंदोलन तब तक चलेगा जब तक कि छात्रों और अभिभावकों को फीस कटौती के रूप में राहत नहीं मिलती है। 18 मार्च औऱ 8 अप्रैल की शिक्षा निदेशालय की अधिसूचना के बावजूद किसी भी स्कूल ने फीस कटौती के लिए अपने स्तर पर पहलकदमी नहीं की है जिससे साफ है कि निजी स्कूल मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं।

मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने मांग की है कि प्रदेश सरकार निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाए। इसके लिए सबसे पहले प्रदेश सरकार फीस का ढांचा तैयार करे। माननीय उच्च न्यायालय हिमाचल प्रदेश के निर्देशों के बाद निजी स्कूलों ने लूट का तरीका बदल दिया है। इसके तहत अब फीस बुकलेट में हर साल एडमिशन फीस और बिल्डिंग फंड का कॉलम हटाकर एनुअल चार्जेज़, ट्यूशन फीस, स्मार्ट क्लास रूम फीस, मोबाईल मैसेज फीस और अन्य तरह की फीसों के कॉलम बना दिये गए हैं और एडमिशन फीस को इन तरह-तरह की फीसों में एडजस्ट कर दिया गया है।

इस तरह फीस बुकलेट से सिर्फ एडमिशन फीस का कॉलम तो हट गया है परन्तु एडमिशन फीस की राशि अन्य फीसों में एडजस्ट कर दी गई है। अगर वाकई में अगली कक्षाओं में एडमिशन फीस नहीं ली जा रही है जैसा कि स्कूल प्रबंधन दावा कर रहे हैं तो फिर एडमिशन होने के बाद अगली कक्षाओं में एडमिशन फीस न होने के कारण फीस काफी कम होनी चाहिए थी लेकिन फीस तो अगली कक्षाओं में और ज़्यादा वसूली जा रही है। जिससे स्पष्ट है कि निजी स्कूलों के प्रबंधन आई वॉश कर रहे हैं और छात्रों और अभिभावकों की लूट बे-रोक-टोक तरीके से जारी है।

उन्होंने कहा है कि एक तरफ भारी फीसें वसूली जा रही हैं वहीं दूसरी ओर ड्रेस और किताबों के नाम पर लूट और ज़्यादा भयानक है। स्कूलों द्वारा ड्रेस और किताबों के नाम पर प्रति छात्र प्रति वर्ष अमूमन 20 से 25 हज़ार रुपए वसूले जाते हैं। ये किताबें CBSE गाइडलाइनज़ के तहत उपलब्ध करवाई जाने वाली किताबों से 5 से 8 गुणा अधिक कीमत पर बेची जा रही हैं। ड्रेस भी साधारण दुकानों के मुकाबले 3 गुणा रेट पर उपलब्ध करवाई जा रही है।

हज़ारों रुपये की किताबें और ड्रेस खरीदने पर अभिभावकों को एक भी रुपया नहीं छोड़ा जाता है जबकि साधारण दुकानों में एक कमीज और एक किताब खरीदने पर भी दुकानदार ग्राहकों को छूट देते हैं। इस तरह स्कूलों द्वारा फीसों, ड्रेस और किताबों के माध्यम से भारी लूट की जा रही है जिस पर कोई भी सख्त कदम शिक्षा विभाग द्वारा नहीं उठाया जा रहा है।