मनुष्य एवं जंगली जानवरों का संघर्ष सदियों से चला आ रहा है। जब भी मनुष्य जंगल पर अपने अधिपत्य स्थापित करने की कोशिश करता है ये संघर्ष बढ़ जाता है। वर्तमान में भी बढ़ती आबादी के चलते ये संघर्ष बढ़ गया है खासकर बंदरों एवं मनुष्य के बीच संघर्ष ज्यादा बढ़ गया है। इसी को लेकर शिमला में मनुष्य और जंगली जानवरों के बीच के संघर्ष को लेकर एक दिन की कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों, नगर निगम शिमला के पार्षदों सहित किसानों ने भाग लिया। वन मंत्री गोविन्द ठाकुर ने कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में शिरक़त की। इस मौके पर उन्होंन कहा कि बंदरो को पकड़ने वाले को अब 500 की जगह 1000 की राशि दी जाएगी।
वन मंत्री ने कहा कि प्रदेश की अधिकतर पंचायतें बंदरों से परेशान हैं। अकेले कृषि में ही 184 करोड़ का नुकसान हो रहा है। शिमला में भी ये समस्या बड़ी विकराल हो चुकी है। लोगों को बंदरों की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इनकी नसबंदी के कार्यक्रम में तेजी लाई जाएगी। वन मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने कहा कि अगले साल नसबंदी का दोगुना लक्ष्य तय किया जाए, ताकि बंदरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित किया जा सके।
उन्होंने कहा कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मोबाइल वैन नसबंदी ऑप्रेशन को भी प्राथमिकता दी जाएगी। बन्दरो को पकड़ने का कार्य भी किया जा रहा है। इस बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा रहे है। मंत्री ने कहा कि नसबंदी के साथ अब बंदरो को पकड़ने की राशि भी 500 से बढ़ाकर 1000 रुपए की जाएगी।
गोविंद ठाकुर ने बताया कि प्रदेश में वर्ष 2015 में बंदरों की गणना की गई थी। उस समय हिमाचल में बंदरों की संख्या 2,07,614 थी। वन्यजीव विभाग का दावा है कि 2007 के बाद से अब तक 1.55 लाख बंदरों की नसबंदी की गयी है। बीते 12 वर्षों के दौरान वन विभाग ने नसबंदी पर 30 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। इसने 8 नसबंदी केंद्र खोले हैं। इस साल 20 हज़ार बंदरों की नसबंदी का लक्ष्य रखा गया है।