छात्र अभिभावक मंच ने निजी स्कूलों की मनमानी, लूट और भारी फीसों के खिलाफ डीएवी स्कूल माल रोड़ पर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान निजी स्कूलों के मनमानी, लूट और डीएसपी प्रमोद शुक्ला की तानाशाहीपूर्ण कार्यप्रणाली के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की गई। मंच ने चेताया है कि आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कि निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए कानून, पॉलिसी और रेगुलेटरी कमिशन नहीं बनता है।
मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि निजी स्कूलों की लूट के खिलाफ चल रहे आंदोलन के दूसरे चरण में डीएवी स्कूल माल रोड़ पर धरना दिया गया। उन्होंने कहा कि डीएवी स्कूल में छात्रों की भारी लूट हो रही है। उनसे 45 हज़ार से लेकर 80 हज़ार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। नर्सरी की फीस भी 45 हज़ार है। माल रोड़ और लक्कड़ बाजार स्थित डीएवी स्कूल की सालाना आय 11 करोड़ रुपये है। इसमें से 4 करोड़ रुपये अध्यापकों और कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो रहे हैं। हर साल स्कूल की रिपेयर, लैबों और स्मार्ट क्लास रूमों को मॉडर्न करने आदि पर लगभग 2 करोड़ रुपये खर्च आता है। कुल 11 करोड़ रुपये की आय में से 6 करोड़ रूपये सालाना खर्चा है। इस तरह 1800 बच्चों की संख्या वाला यह स्कूल 5 करोड़ रुपये सालाना शुद्ध मुनाफा कमा रहा है।
इसी तरह न्यू शिमला स्थित डीएवी स्कूल में छात्रों की संख्या लगभग 4500 है। यहां का मुनाफा लगभग 12 करोड़ रुपये है। इस तरह दोनों स्कूलों को मिलाकर कुल सालाना मुनाफा लगभग 17 करोड़ रुपये बनता है। अगर इसमें टूटू का डीएवी स्कूल भी जोड़ दिया जाए तो मुनाफा 20 करोड़ रुपये पार कर जाएगा। इससे साफ है कि यह संस्था कई बड़े-बड़े उद्योगों से भी कई गुणा ज़्यादा मुनाफा कमा रही है और शिक्षा को बाजार बना रही है।
उन्होंने निजी स्कूलों की पार्किंग समस्या के संदर्भ में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए हालिया निर्णय का भरपूर स्वागत किया है और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से अनुरोध किया है कि वह 27 अप्रैल 2016 के हिमाचल उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना का स्वयं संज्ञान लें और अवमानना करने वालों पर कड़ी कार्रवाई अमल में लाएं। उन्होंने कहा कि निजी स्कूल संस्थाएं हरसाल 5 से 20 करोड़ रुपये मुनाफा कमा रही है परन्तु इसके बावजूद न अपनी स्कूल बसें चलाती हैं जैसा कि हिमाचल उच्च न्यायालय कह चुका है और न ही पार्किंग व्यवस्था करती है।
जैसा हालिया उच्च न्यायालय के निर्देश से स्पष्ट है। इससे साफ पता चल रहा है कि निजी स्कूल न तो उच्च न्यायालय और न ही नगर निगम शिमला के निर्देशों की परवाह करते हैं और ढाक के तीन पात की तरह काम करते हैं। इससे काफी हद तक स्पष्ट हो रहा है की निजी स्कूल तानाशाह है और न तो सरकार के निर्देशों की पालना करते हैं और न ही न्यायालय के आदेशों को मानते हैं। इसलिए बेहद ज़रूरी है कि कानून बनाकर इनकी तनाशीही, मनमानी और लूट पर रोक लगाई जाए।