अंग्रेज़ी हकूमत की ग्रीष्मकालीन राजधानी पहाड़ो की रानी शिमला में एक समय ऐसा भी था जब यहां हाथ से चलने वाले रिक्शा अंग्रेजो की शान हुआ करते थे। शिमला के इतिहास में ज़िक्र मिलता है कि 1880 में शिमला की सड़कों पर पहला हाथ चलित रिक्शा नज़र आया था।
सन 1931 तक शिमला में 476 रिक्शा हो गए। जिनको चलाने के लिए 2863 लोगो को लाईसेंस दिया गया था। शिमला के माल रोड़ में ये रिक्शा 1980 तक दौड़ते रहे। जिनको खड़ा करने एवम रिक्शा चालकों के रहने के लिए 38 शेड भी बनाए गए थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1921 में गुजराती नवजीवन के दिए अपने एक लेख में हाथ से चलाने वाले रिक्शा की निंदा की थी। लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी जब शिमला आए तो उन्होंने भी इस रिक्शा की सवारी की थी।
शिमला के बुजुर्ग बताते है कि शुरू शुरू में इस रिक्शा सफ़र के मात्र एक आना किराया लगता था जो कि 1980 तक डेढ़ रुपया हो गया। लेकिन आज़ादी से पहले भारतीयों को इस रिक्शा में बैठने पर पाबंदी थी। सिर्फ वशिष्ठ व्यक्ति व अंग्रेज ही इस रिक्शा की सवारी किया करते थे। भारतीयों को आज़ादी के बाद ही रिक्शा की सवारी करने का मौका मिला।