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शिमला में सीटू का महिलाओं से बलात्कार और हत्याओं के खिलाफ रिज पर मौन प्रदर्शन

पी. चंद, शिमला |

सीटू राज्य कमेटी के आवाहान पर शिमला सीटू जिला कमेटी के बैनर तले महिलाओं और बच्चों पर बढ़ते बलात्कार व अत्याचार के खिलाफ शिमला के रिज मैदान पर महात्मा गांधी के स्टेचू के नीचे सीटू के 200 कार्यकर्ताओं ने मुहू में काली पट्टी बांध के शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) देश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा और अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करता है।  यह चौंकाने वाली बात है कि जब पूरा देश इन अपराधों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा था और उन्नाव में एक लड़की के बलात्कारियों सहित पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग कर रहा था, तब जो आरोपी जमानत पर छूट गए थे, उन्होंने पीड़िता का अपहरण कर लिया था और उसे जला दिया गया जिससे से हमारी सरकारों और कानून व्यवस्था की पूरी पोल खोल के रख दी।

सीटू का कहना है कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, जो सख्ती से नवउदारवादी विचारधारा का अनुसरण कर रही है। और आरएसएस द्वारा निर्देशित है, की मनुवादी ’विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध है, महिलाओं के खिलाफ हिंसा खतरनाक अनुपात तक पहुंच गई है।  पिछले एक हफ्ते में देश में अलग-अलग जगहों पर महिलाओं के खिलाफ कुछ सबसे जघन्य अपराध हुए।  पीड़ितों में नब्बे साल की महिलाओं के साथ 3 महीने की नवजात लड़कियां शामिल है, उनके घरों के भीतर, उच्च सुरक्षा कार्यस्थलों पर बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है और उनकी हत्या कर दी जाती है। इस प्रकार की घटना महानगरीय शहरों से दूर के गांवों तक फैल रही है ये समाज के भीतर पतन की सड़ांध को दर्शाता है जो आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संकट में है। 2012 में निर्भया, कठुआ, उन्नाव, हिमाचल में गुड़िया रेप और मर्डर से इन सरकारों ने कोई सबक नहीं लिया। बल्कि बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा यात्राएं निकाली गई और चुने हुए बीजेपी के सांसदों ने बलात्कार के लिए दोषी उल्टा लड़कियों को ही माना  हैं क्योंकि ये एक मनुवादी सोच वाली सरकार है।

आये दिन दोषियों के समर्थन में कुछ विधायकों के बयान और उनके द्वारा विस्तारित संरक्षण, विशेष रूप से सत्ता में उन लोगों द्वारा ऐसे अपराधों के अपराधियों के बचाव किया जा रहा है जिससे इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने वाले के होंसले बढ़ते जा रहे है।  केंद्र सरकार द्वारा निर्भया फंड का कम आवंटन और इसका गैर-उपयोग केंद्र सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।  जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशें कई जगहों पर कागजों में हैं।  आगे इस मुद्दे को महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लिए समाज के विभिन्न स्तरों पर कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जिस पर सरकार का रवैया उदासीन है। निर्भया मामले में, हैदराबाद में हुए बलात्कार और हत्या ने महिलाओं की सुरक्षा और सुरक्षा के मुद्दे को समाज में मुख्यधारा की बहस में ला दिया था ।

हिमाचल में गुड़िया रेप और मर्डर केस को लेकर हम शुरू से ही इस बात पर चिंता व्यक्त कर रहे थे कि इसमें एक आदमी दोषी नहीं बल्कि एक से ज्यादा व्यक्ति दोषी हैं। जो आज फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट आने पर साफ हो गया है जिसमें यह बताया गया है कि गुड़िया रेप और मर्डर केस में एक से ज्यादा व्यक्ति शामिल थ। जिससे CBI भी सवालों के घेरे में है। आखिर CBI किसको बचाने का काम के रही है। वर्तमान बीजेपी की सरकार ने पूरा चुनाव गुड़िया के मुद्दे पर लड़ा था और बाद में गुड़िया को न्याय दिलवाने के नाम पर धोखा किया। गुड़िया हेल्प लाइन के अलावा कुछ नहीं किया। हम मांग करते है गुड़िया रेप और मर्डर केस की दोबारा जांच की जाए ताकि असली दोषियों को सजा मिल पाए और गुड़िया व गुड़िया के परिवार व पूरे समाज को न्याय मिल पाए।

सीटू महिलाओं के खिलाफ राक्षसी अत्याचारों की कड़ी निंदा करता है और सरकार से महिलाओं की सुरक्षा और सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने की मांग करता है।  यह सरकार से समाज में प्रचलित महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण और पितृसत्तात्मक रवैये को समाप्त करने के लिए कड़ी कार्रवाई शुरू करने की मांग करता है। महिलाओं पर बढ़ रही यौन हिंसा की लड़ाई सिर्फ महिलाओं की नहीं है बल्कि इस समाज को भी इस जिम्मेवारी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी पड़ेगी। ये मुद्दा समाजिक मुदा है। इसलिए समाज को भी इसमें भूमिका निभानी है।