नौणी विश्वविद्यालय ने आईआईटी मुंबई के साथ मिलकर पहली स्वदेशी एंटी हेलगन तैयार की है। खास बात यह है कि इस एंटी हेलगन को मिसाइल और लड़ाकू विमान चलाने वाली तकनीक का प्रयोग कर तैयार किया गया है। अभी तक इस गन के ट्रायल पर शोध चल रहा है। यह स्वदेशी एंटी हेलगन एलपीजी से कार्य करेगी और विदेशी एंटी हेलगन के मुकाबले सस्ती भी होगी। यदि इसका ट्रायल सफल होता है तो किसानों-बागवानों को कम कीमत में हर साल ओलावृष्टि से अपनी फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक होगी।
खर्चे की बात करें तो गन को लगाने समेत इस तकनीक की शुरुआती खर्च करीब दस लाख रुपये तक होगा जबकि बाद में सिर्फ एलपीजी गैस का ही खर्च आएगा। यदि इस एंटी हेलगन को विदेशों से खरीदने की बात करें तो विदेशों से मंगवाने पर इसका खर्च 50 से 70 लाख तक पड़ता है। ऐसे में प्रदेश के बड़े किसान-बागवान आसानी से इस स्वदेशी हेलगन को खरीद सकते हैं और हर साल होने वाले नुकसान से अपनी फसल का बचा सकते हैं।
विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके भारद्वाज के अनुसार हवाई जहाज के गैस टरबाइन इंजन और मिसाइल के रॉकेट इंजन की तर्ज पर इस तकनीक में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया गया है। इसमें एलपीजी और हवा के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ दागा जाता है। इस हल्के विस्फोट से एक शॉक वेव तैयार होती है। यह शॉक वेव एंटी हेलगन के माध्यम से वायुमंडल में जाती है और बादलों के अंदर स्थानीय तापमान बढ़ा देती है। इससे ओला बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। यदि इस एंटी हेलगन का ट्रायल सफल रहता है तो सोलन जिला के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी इसे लगाने की योजना है।