छात्र अभिभावक मंच ने निजी स्कूलों की मनमानी, लूट और भारी फीसों के खिलाफ आंदोलनरत मंच के सदस्यों पर पुलिस प्रशासन द्वारा दर्ज किए जा रहे मुकद्दमों की कड़ी निंदा की है। मंच ने इसे पुलिस की तानाशाही करार दिया है। मंच ने निर्णय लिया है कि पुलिस की इस कार्यप्रणाली के खिलाफ हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर पुलिस की तानाशाही पर रोक लगाने और डीएसपी प्रमोद शुक्ला को तुरन्त निलंबित करने की मांग की जाएगी।
मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने स्पष्ट कर दिया है कि पुलिस स्कूल प्रबंधनों के साथ मिलकर मंच के नेताओं के खिलाफ चाहे जितने मर्ज़ी मुकद्दमे बना ले परन्तु मंच निजी स्कूलों के खिलाफ चलाये जा रहे आंदोलन से पीछे नहीं हटेगा और यह आंदोलन निर्णायक मोड़ तक जाएगा। उन्होंने हिमाचल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से मांग की है कि शिमला शहर के डीएसपी प्रमोद शुक्ला को तुरन्त निलंबित करके उन पर जांच बिठानी चाहिए क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली पक्षपातपूर्ण है। यह डीएसपी साहब एक तरफ हिमाचल उच्च न्यायालय के 27 अप्रैल 2016 के निर्णय को लागू करवाने के लिए आंदोलनरत अभिभावकों पर मुकद्दमे लाद रहे हैं। वहीं उच्च न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाने वाले स्कूल प्रबंधकों पर कांटेम्पट ऑफ कोर्ट के तहत कोई मुकद्दमा दर्ज नहीं कर रहे हैं।
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हिमाचल उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि जो भी संस्थान फीसों और अन्य मामलों पर उच्च न्यायालय का आदेश नहीं मानेंगे उनपर कांटेम्पट ऑफ कोर्ट के तहत मुकद्दमे दर्ज होने चाहिए। इसके बावजूद डीएसपी प्रमोद शुक्ला उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने वाले निजी स्कूल प्रबंधनों पर मुकद्दमा दर्ज करने के बजाए उच्च न्यायालय के आदेशों की रक्षा करने वालों के खिलाफ मुकद्दमे दर्ज कर रहे हैं। इस घटनाक्रम से साफ हो गया है कि डीएसपी साहब न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं करते हैं। इसलिए डीएसपी के ऊपर कॉंटेप्ट ऑफ कोर्ट के तहत मुकद्दमा दर्ज किया जाए व उन्हें तुरन्त प्रभाव से निलंबित किया जाए।
विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि डीएसपी प्रमोद शुक्ला की कार्यप्रणाली हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के घटनाक्रम में भी स्पष्ट हो चुकी है जहाँ पर दराट जैसे खतरनाक तेज़ धारधार हथियार के साथ पकड़े गए युवक पर आर्मज़ एक्ट व रायोटिंग के तहत मुकद्दमा दर्ज करने के बजाए महज़ 107,51 के तहत साधारण मुकद्दमा दर्ज करके हिंसा फैलाने वालों की रक्षा की तथा संविधान व कानून को ताक पर रख दिया। दोषियों के बचाव करने के लिए उन्होंने दराट जैसे खतरनाक हथियार को कृषि उपकरण बता दिया। इस से साफ पता चल रहा है कि यदि ऐसा अधिकारी संवेदनशील पद पर बना रहेगा तो न केवल संविधान खतरे में पड़ेगा बल्कि उच्च न्यायालय का भी माखौल बनकर रह जायेगा।