छात्र अभिभावक मंच ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं। मंच ने शिक्षा विभाग से पूछा है कि जब 4 साल पहले इंस्पेक्शन टीमें बन गई थी तो फिर किसी भी निजी स्कूल की इंस्पेक्शन क्यों नहीं हुई। निजी स्कूलों को इंस्पेक्शन के दायरे में न लाकर आखिर उन्हें क्यों विशेषाधिकार दिए गए। क्यों उन्हें सिस्टम में ज़्यादा तवज्जो दी गई। क्यों उनकी मनमर्जी, मनमानी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि निजी स्कूलों को हमेशा विशेष तरह की इम्युनिटी प्राप्त रही है। शिक्षा विभाग द्वारा लिए गए निर्णय हमेशा सरकारी स्कूलों पर थोपे गए परन्तु निजी स्कूलों में इन निर्णयों को लागू करवाने के लिए शिक्षा विभाग ने कभी भी कोई पहलकदमी नहीं की। इससे साफ पता चलता है कि शिक्षा विभाग के सरकारी और निजी स्कूलों के लिए अलग-अलग मापदंड हैं।
इससे यह भी पता चलता है कि निजी स्कूल प्रबंधनों का पूरे शिक्षा तंत्र में बोलबाला है और वे हर तरह के नियम कायदे कानून से परे हैं। निजी स्कूलों का पूरे सिस्टम में दबदबा इस कदर है कि शिक्षा निदेशालय के अधिकारी भी इन स्कूलों में हाथ डालने से कतराते हैं। शिक्षा अधिकारी भी निजी स्कूल प्रबंधनों के लंबे हाथों से ख़ौफ़ज़दा हैं।
उन्होंने शिक्षा विभाग द्वारा गठित 72 इंस्पेक्शन टीमों को केवल सफेद हाथी करार दिया है। उन्होंने शिक्षा निदेशक को चुनौती दी है कि अगर वाकई में ये 72 इंस्पेक्शन टीमें कोई बेहतर कार्य कर रही हैं तो उनका रिकॉर्ड अभिभावकों और जनता के सामने रखा जाए। उन्होंने चिंता व्यक्त की है कि अगर इस तरह से सरकारी तंत्र काम करेगा जहां पर निजी स्कूलों में मनमानी, लूट, मनमर्ज़ी और भारी फीसों को संचालित करने के बजाए उन्हें खुली छूट मिलेगी तो फिर छात्रों और अभिभावकों के हित कभी भी सुरक्षित नहीं रह पाएंगे।
उन्होंने कहा कि 8 अप्रैल के बाद शुरू हुई इंस्पेक्शन में भी छोटे निजी स्कूलों को टारगेट किया जा रहा है और बड़े-बड़े निजी स्कूलों पर कोई ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई जा रही है। उन्होंने कहा कि चंबा, डलहौज़ी, नाहन, पौंटा साहिब, नालागढ़, बद्दी, मंडी, सरकाघाट, पालमपुर, शिलाई, रामपुर आदि क्षेत्रों से मंच के पास काफी शिकायतें आ रही हैं जिसमें स्पष्ट नज़र आ रहा है कि कार्रवाई दिखाने के नाम पर छोटे निजी स्कूलों पर अधिकारी अपनी धौंस जमा रहे हैं और महंगे कान्वेंट व बड़े निजी स्कूलों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
इन महंगे स्कूलों में मनमानी और लूट आज भी उसी तरह से जारी है। इसलिए इंस्पेक्शन टीमें केवल ढकोसला हैं। अगर शिक्षा अधिकारी वाकई में गम्भीर हैं तो 11 अप्रैल तक की डेडलाइन वाले स्कूलों में की गई इंस्पेक्शन की रिपोर्ट को तुरन्त सार्वजनिक करें अन्यथा यह समझा जाएगा कि इंस्पेक्शन टीमें केवल अभिभावकों का गुस्सा शांत करने और शो-ऑफ के लिए बनाई गई हैं। उन्होंने शिक्षा अधिकारियों को चेताया है कि वे प्रदेश में गठित इंसपेक्शन टीमों की कार्रवाई का रिज़ल्ट दिखाएं अन्यथा अभिभावकों के आंदोलन का लगातार सामना करें।