प्रदेश के दूसरा बड़ा मेडिकल कॉलेज टांडा में करोड़ों के कथित घोटाले का मामला सामने आया है। फर्जीवाड़े का सारा खेल मेडिकल कॉलेज के परिसर में स्थिति पार्किंग से जुड़ा है। जानकारी के मुताबिक पार्किंग के टेंडर में पिछले 4 सालों से घपलेबाजी का गोरखधंधा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और संबंधित प्रशासनिक महकमे की मिलीभगत से चल रहा था।
पार्किंग का टेंडर गलत तरीके से पिछले चार सालों से एक्सटेंड किया जा रहा था। अव्वल तो यह कि जिस ठेकेदार के नाम टेंडर का एक्सटेंशन हो रहा था, उसे इस बात की भनक भी नहीं थी। मतलब, किसी और के नाम पर सालों से पार्किंग का टेंडर से माल जुटाया जा रहा था। जिस शख्स के नाम पर फर्जी टेंडर का एक्सटेंशन किया गया उसका नाम है पवन ठाकुर। (खबर के नीचे पवन ठाकुर का पूरा बयान हैं, आप देख सकते हैं)
फर्जीवाड़ा कैसे हुआ ?
टांडा मेडिकल कॉलेज में पार्किंग का 2014 में एक टेंडर निकला। टेंडर की शर्त थी कि जिसके पास पीएफ एकाउंट होगा टेंडर उसी को जारी किया जाएगा। उस दौरान नगरोटा बगवां के पवन ठाकुर ने टेंडर की सारी शर्तें पूरी कीं और एक लाख रुपये की एफडी के साथ एक साल के लिए पार्किंग का टेंडर उन्हें दे दिया गया। लेकिन, मसला यहीं से यू-टर्न लेता है। पवन ठाकुर का आरोप है कि उन्होंने पारिवारिक कारणों से यह टेंडर अपनी एक नजदीकी शख्स को दे दी। टेंडर के एक साल पूरा होने के बाद पवन ठाकुर ने अपना एक लाख रुपया लिया और खुद को इस बिजनेस से अलग कर लिया। लेकिन, यह टेंडर लगातार तीन सालों से अतिरिक्त रूप से उन्हीं के नाम पर एक्सटेंड होता रहा।
मामले की कलई तब खुली जब अगस्त 2018 में इसी पार्किंग का टेंडर दोबारा खुला और पवन ठाकुर आवेदन करने पहुंच गए। पवन ठाकुर को यहां जानकारी मिली कि उन्हें फॉर्म भरने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि टेंडर तो पिछली चार सालों से उन्हीं के नाम पर है और तीन सालों से लगातार एक्सटेंड भी किया जा रहा है। ऐसे में पवन ठाकुर का दिमाग फिर गया और उन्होंने इसकी जब तफ्तीश करायी तो मामले में बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया।
क्या है फर्जीवाड़े का आधार?
पवन ठाकुर के मुताबिक उनके जाली हस्ताक्षर जरिए एक फर्जी डीड बनाई गई है। जिसमें उनके नजदीकी शख्स ने अपनी मां सुषमा पाल के नाम से 99 फीसदी और मेरे नाम से 1 फीसदी का शेयर रखा। इसके अलावा जाली हस्ताक्षर के जरिए ही बिजली का मीटर भी लगवा दिया गया। इस तरह तमाम कागजी कार्रवाई फर्जी तरीके से बीते तीन सालों से हो रही थी।
अधिकारियों की मिलीभगत
पवन ठाकुर का आरोप है कि जिस शख्स ने इस काम को अंजाम दिया है वह स्थानीय विधायक का करीबी है। उस पर सरकारी तंत्र भी मेहरबान है। यही वजह है कि जब उसने टेंडर पर अपना दावा फिर से ठोका तो इसकी सुनवाई नहीं हो रही है।
पवन ठाकुर का आरोप है कि इस मामले में टांडा मेडिकल कॉलेज के एमएस और स्थानीय पुलिस भी आरोपी शख्स के साथ मिली हुई है। क्योंकि, जब उन्होंने दोबारा अपना हक जताना चाहा, तो उन्हें जबरन पार्किंग की वसूली से हटा दिया गया।
टांडा मेडिकल कॉलेज में हुए इस पूरे घटनाक्रम ने कई महकमों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। इसमें मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से लेकर, तमाम विभाग हैं जहां से दस्तावेजों का फर्जीवाड़ा शुरू हुआ है।
देखें- पवन ठाकुर की जुबानी फर्जीवाड़े की पूरी कहानी