हिमाचल प्रदेश के दो अध्यापक गुटों के बीच छिड़े चुनाव को लेकर विवाद का मामला कोर्ट पहुंच गया है। 9 नवंबर को शिमला में राजकीय अध्यापक संघ के चुनाव आयोजित करवाए गए जबकि इसी दिन अध्यापक के दूसरे गुट के चुनाव हमीरपुर में हुए और राजकीय अध्यापक संघ दो गुटों में बंट गया। गुटों में बंटते ही दोनों संघों के बीच जुबानी जंग भी छिड़ गई। राजकीय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने कहा कि अध्यापक संघ से बर्खास्त किये गए पूर्व पदाधिकारियों ने राजकीय अध्यापक संघ विरोधी गतिविधियों में भाग लिया और संघ के संविधान के खिलाफ जाकर समांतर चुनाव आयोग का गठन कर चुनाव आयोजित किए हैं। जिसको लेकर राजकीय अध्यापक संघ जिला अदालत में गया और कोर्ट ने अध्यापक संघ के पक्ष में शुरुआती निर्णय लिया है।
वीरेंद्र चौहान ने कहा कि अध्यापक संघ दो गुटों में नहीं बंटा है बल्कि संगठन का कुछ पार्ट को कैंसर हो गया था इसलिए उसे शरीर से अलग किया गया है। राजकीय अध्यापक संघ के दूसरे गुट ने अध्यापकों की सदस्यता के लाखों पैसे का दुरुपयोग किया है। संघ ने राजकीय अध्यापक संघ के चिन्ह और नाम का प्रयोग करने पर भी कोर्ट से रोक लगाने की मांग की है। कोर्ट ने 30 नवंबर तक अध्यापकों के दूसरे धड़े से मामले को लेकर जवाब मांगा है और अध्यापकों के पैसे को खर्चने पर रिक लगाई है।साथ ही राजकीय अध्यापक संघ के चुनावों को कानूनी मान्यता देने बात भी कही है।
वंही, संघ के अध्यक्ष ने सरकार से अध्यापकों को गैर शिक्षण कार्यों में न लगाने की मांग की है। अध्यापक संघ के अध्यक्ष ने कहा कि अगर माननीयों को दो दो पेंशन दी जा सकती हैं तो कर्मचारियों और अध्यापकों को भी पेंशन का अधिकार है। इसके अलावा संघ ने कंप्यूटर अध्यापकों को नीति बनाने, सिंतबर में 3 साल का अनुबंध कार्यकाल पूरा करने वाले अध्यापकों को नियमित करने, दिसंबर में होने वाले प्री बोर्ड की 10वीं व 12 वीं की परीक्षाओं वाले स्कुलों के अध्यापकों की एसएसए/आरएमएसए की 5 दिन ट्रेनिंग पर रोक लगाने और स्कूल में अत्यधिक गतिविधियों को न करवाने की सरकार से मांग की है क्योंकि इन कार्यक्रमों से बच्चों की पढ़ाई के लिए समय नहीं बच पा रहा है। वंही अध्यापक संघ ने नशे के खिलाफ एक शुरू किए गए एक महीने के अभियान को भी बच्चे की पढ़ाई में बाधा बताया है।