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हिमाचल की भवनात्मक एकता का दिन है 1 नवम्बर

मृत्युंजय पुरी, धर्मशाला |

1 नवम्बर हिमाचल के इतिहास और भूगोल को बदलने वाला दिन है। जब इतिहास और भूगोल बदलता है तो परिवर्तन कई सामाजिक, आर्थिक एवं भवनात्मक बदलाव लाता है। 1 नवम्बर 1966 को पंजाब राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत हिमाचल प्रदेश में लाहौल स्पीति ,कुल्लू ,कांगड़ा ,नालागढ़ और शिमला शामिल हुए थे। इसमें हिमाचल का क्षेत्रफल 27263 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया जो अब 55673 वर्ग किलोमीटर है। हिमाचल में पंजाब से नए क्षेत्रों के मिलने के बाद पंजाब से पुनर्गठन एक्ट के तहत हिमाचल को पंजाब से 7.19% हिस्सा मिलना तय हुआ। नए संकल्पों के लिए 1 नवम्बर को हिमाचल में भवनात्मक एकता दिवस या अधिकार दिवस के रूप में अवश्य मनाना चाहिये।

बता दें कि इस साल हम 52 साल बाद पंजाब से अपना हिस्सा, शानन प्रोजेक्ट और अन्य राजस्व में जायज हिस्से की पुनर्व्याख्या एवं हिमाचल के हितों की पैरवी के संकल्प लेने की शपथ ले सकते हैं। साथ ही हिमाचल की लगभग सभी सरकारों ने इस मांग को आगे बढ़ाया, लेकिन दृढ़ता से यह मामला पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल ने ही उठाया, अब सरकार बनते ही चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मामले में अपनी प्रतिबद्धता सभी के सामने रखी।

27 सितम्बर 2011 को हिमाचल सरकार बनाम भारतीय संघ व अन्य के वाद में मामले के निपटारा करते हुए उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायधीश न्यायमूर्ति आर वी रवीन्द्रन एवं ऐ के पटनायक की खंडपीठ ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को हिमाचल के हिस्से के 7.19% राजस्व , शानन पावर हाउस से हिस्सा, ब्यास प्रोजेक्ट और अन्य हक पुनर्गठन एक्ट की धारा 79 में वृहित व्याख्या की और हिमाचल के हिस्से देने के आदेश पंजाब, हरियाणा के खिलाफ पारित कर दिए। हिमाचल सरकार ने माननीय उच्चतम न्यायालय में एग्जीक्यूशन पेटिशन दायर की है जिसमें अभी तक पंजाब और हरियाणा सरकारों ने कुछ आपत्तियां की है जिसका निपटारा न्यायालय में लंबित है।

समग्र विकास के लिए 1 नवम्बर 1966 से लेकर एक सार्थक पहल की और शिखर की ओर हिमाचल के नारे के संकल्प के साथ बढ़ना शुरू किया है। 9 महीने में 9000 करोड़ रुपये हिमाचल में केंद्र सरकार से प्रत्यक्ष तौर पर लाये और केंद्र की योजनाओं से भी हिमाचल में कई हजार करोड़ का निवेश पिछले एक वर्ष में हुआ। हिमाचल में जयराम सरकार ने मजबूती से इस विषय में कदम उठाए हैं। परंतु अब सरकार के साथ हर वर्ग को इस हिस्से को लेने का प्रयास करना होगा। प्रदेश वासियों के अधिकार निश्चित तौर पर मिलेंगे ही लेकिन प्रदेश का अधिकार लेने को राजनीति से ऊपर उठकर आगे आना पड़ेगा। हिमाचल के लिए 7.19% हिस्से का बहुत महत्व है। इससे राजस्व प्राप्तियां बढ़ने से कई पेचीदा मसले हल हो सकते हैं।