हिमाचल प्रदेश के पूर्व मंत्री जीएस बाली की अब यादे ही रह गई हैं. उनके अपने चाहने वाले और करीबी जीएस बाली के साथ बिताए पलों को याद कर रहे हैं और उनके व्यक्तित्व के बारे में बता रहे हैं. ऐसे ही एक पूर्व आईएएस अधिकारी तरुण श्रीधर हैं जिन्होंने जीएस बाली के बारे में लंबी कहानी साजा की है.
समाचार पत्र दैनिक जागरण में छपे एक लेख के मुताबिक तरुण श्रीधर कहते हैं कि ‘दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से ऐसा हफीज होशियारपुरी ने कहा है और एक ऐसा ही दोस्त था गुरमुख सिंह बाली. इससे बेहतर दोस्त की उम्मीद या परिकल्पना असंभव है. बाली का नाम उनके व्यक्तित्व एवं गुणों के कतई अनुकूल था’.
श्रीधर ने जीएस बाली के साथ अपनी दोस्ती का जिक्र करते हुए कहा कि ‘मेरी और जीएस बाली की तीन दशक पहले से अधिक की घनिष्ठ मित्रता रही. कोई कारण नहीं था इस मैत्री का. मैं एक प्रशासनिक अधिकारी और बाली एक राजनेता. ऐसे में औपचारिक और कामकाजी संबंध से अधिक कोई संभावना नहीं थी. पर रिश्ते मात्र तर्क और स्थापित परंपरा से ही निर्धारित नहीं होते. राजनीतिक और शासकीय गलियारों में हमारी मित्रता सर्वविदित थी जिस पर अक्सर आलोचनात्मक चर्चा होती. ताने भी मिलते’.
एक अधिकारी और नेता की दोस्ती कई लोगों की नजरों में रहती है. खासतौर पर सियासत की सुर्खियां भी बनी रहती है. इसी का जिक्र करते हुए श्रीधर आगे कहते हैं कि ‘2006 में तत्कालीन मुख्य सचिव ने मुझे ये परामर्श लगभग आदेशात्मक स्वर में ही दिया था कि मैं बाली से दूरी बना कर रखूं. मेरे करियर के लिए यह संबंध ठीक नहीं. क्योंकि गुप्तचर विभाग के मुखिया ने मुख्यमंत्री को यह फीडबेक दिया कि मुख्यमंत्री के विरुद्ध उनके कैबिनेट मंत्री बाली षड्यंत्र कर रहे हैं और बाली का मुख्य सलाहकार मैं हूं. मुझे आज भी इस बात का गर्व है कि मैंने इस आदेश को नहीं माना, और प्रसन्नता भी कि मुख्यमंत्री ने अपने गुप्तचर मुखिया की उक्त टिप्पणी पर विश्वास नहीं किया’.
श्रीधर ने जीएस बाली के साथ अपने पारिवारिक रिश्तों को लेकर भी कुछ पल साझा किए. उन्होंने बताया कि ‘मेरे माता-पिता का कुशलक्षेम मुझसे अधिक रखते थे. मेरे बेटे की शादी में पहले अतिथि का स्वागत किया बाली ने, और अंतिम अतिथि को विदा किया बाली ने. रिसेप्शन के दिन सुबह से शाम तक खुद खड़े होकर प्रबंध देखे, तब बाली वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री थे और मैं मात्र सरकारी अधिकारी. अपनी बेटी के विवाह के निमंत्रण पत्र पर बतौर आरएसवीपी दो नाम अंकित किए. उनके बचपन के साथी शशि और विनोद पाल जो अब नीति आयोग के सदस्य हैं तथा मनीषा और तरुण श्रीधर किसी पारिवारिक सदस्य या रिश्तेदार का नाम नहीं.
उन्होंने आगे कहा, ‘इसी विवाह समारोह में जब मैं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को नमस्कार कह रहा था तो वह सोफे से उठ खड़े हुए. मैंने शर्मिंदा होते हुए कहा कि सर बैठे रहिए तो वीरभद्र ने अपने चिर परिचित अंदाज में चुटकी ली- भाई आरएसवीपी का सम्मान करना चाहिए. एक बार पूर्व मुख्यमंत्री ने मुझसे प्यार भरी नाराजगी जाहिर की कि बाली उनका लगातार विरोध कर रहा है और मैं सरकार का वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी उनसे नजदीकियां बनाए हुए हूं. मैंने प्रतिक्रिया में अमर प्रेम फिल्म के गाने के बोल सुनाए. हमको जो ताने देते हैं हम खोए हैं इन रंगरलियों में. हमने उनको भी छिप छिप कर आते देखा इन गलियों में’.