कैसे विभाग की लापहरवाही और सरकार की नजरअंदाजी से जनता के करोंड़ो रुपये भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ जाते हैं। यह जानने के लिए आपको देहरा उपमंडल के गांव गुलेर में बन रही आईपीएच विभाग की करोंड़ो रूपये खर्च कर बनाई गई एक परियोजना की दुर्गति देख पता चल जाएगा। इस पूरे मामले को उजागर करते हुए देहरा के युवा समाजसेवी सुकृत सागर ने बताया कि इस पूरी परियोजना में आंखे बंद करके विभाग ने काम किया।
उन्होंने कहा कि इस परियोजना में सबसे पहले तकरीबन 69 लाख रुपये खर्च करके पाइप डालने का प्राबधान किया गया। उसके बाद परकोरेशन वेल बनाया गया लेकिन इस कुएं की जितनी खुदाई जल भूविज्ञानी द्वारा बताई गई थी उतनी नहीं की गई नतीज़न इसमें पानी कम निकला। जिसकी बजह से उनहत्तर लाख रुपए खर्च करके डाली गई पाइप व्यर्थ होने की कगार पर है। उन्होंने कहा की उन्हें पता कि विभाग ने न जाने किस दबाब के चलते कुआं निकालने से पहले ही पाइप डलबा दी जबकि, विभाग को पहले कुआं निकालना चाहिए था।
इसके बाद विभाग ने लगभग सतरह लाख रुपए खर्च कर सबमर्सिबल मोटर और बाकी की मशीनरी खरीदी जोकी कुंए में पर्याप्त पानी न होने की बजह से प्रयोग में नही लाई जा सकी और उसकी जगह दूसरी कम क्षमता बाली मोटरें प्रयोग की गई तथा सतरह लाख की मशीनरी बैसे ही विभाग के पास पड़ी है।
अब सवाल यह है कि कुएं में पर्याप्त पानी नहीं था यह बात विभाग को पहले ही पता थी तो सतरह लाख की मशीनरी क्यों खरीदी?… इसके बाद जब यह परियोजना विभाग को फेल होती हुई दिखी तो इस पर लीपापोती करने के लिए विभाग ने बिना जल भू-विज्ञानी की रिपोर्ट के एक ओर परकोलेशन कुआं बनाया जो कि बिल्कुल ग्राउंड लेवल का है और बनेर नदी के विचों विच है तो यह सारे का सारा अब बरसात के बाद गाद, मिट्टी से भर गया है और इसमें एक बूंद तक पानी नहीं है। लेकिन, विभाग ने बाकायदा इसका कनेक्शन स्टोरेज टैंक में दिया हुआ है। सुकृत सागर ने बताया कि यह जो दो कुंए बनाए गए यह दोनों ही बीबीएमबी की जमीन में है तो जब पोंग बांध का जलस्तर बढ़ता है तो इनमें से एक कुआँ पूरी तरह जल मगन हो जाता है।
दूसरे का कुच्छ हिस्सा ही बाहर रह जाता है क्योंकि जमीन का यह हिस्सा 1410 फिट के दायरे में आता है। जहां तक बीबीएमबी पांग बांध का पानी हर साल स्टोर करता है। उन्होंने कहा कि आईपीएच के अधिकारियों ने इस जमीन को विभाग के नाम करबा लेने की अंडरटेकिंग तक दी हुई है उन्होंने कहा कि मैं हैरान हूं कि कैसे अधिकारियों ने इस जमीन के लिए फिसिबिलिटी सर्टिफिकेट दे दिए।
उन्होंने कहा कि यह बड़ा हस्यस्पद है कि अब विभाग के अधिकारी बोल रहे है की इस कुए को जमीन से जोड़ने के लिए एक पुल का निर्माण किया जाएगा। इस पूरी परियोजना में पम्प हाउस तक पाइप भी दो बार डाली गई। इस परियोजना के लिए विभाग ने जो फेंसिंग लाखों रुपए खर्च कर खरीदी वो भी अभी तक ऐसे ही पड़ी हुई है। इस परियोजना में मुख्य परकोलेशन वेल की गहराई 17.30 मीटर होनी थी जिसका बकायदा 35 लाख का टेंडर हुआ लेकिन, इसकी अभी की गहराई मात्र 7 मीटर के आस पास है और तो ओर विभाग ने लाखों रुपए खर्च कर जो मुख्य कुआं बनाया उसको ढ़कन तक लगाना तक मुनासिब नहीं समझा।