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शिमला की शान ऐतिहासिक चर्च सजने लगी क्रिसमस के लिए, 160 साल पुराना है शिमला की चर्च का इतिहास

पी.चंद, शिमला |

ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्थित क्राइस्ट चर्च पहाड़ों की रानी शिमला की पहचान है। या यूं कहें कि रिज मैदान का नाम चर्च के नाम पर पड़ा तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चर्च का इतिहास 160 साल से अधिक पुराना है। माना जाता है कि ये गिरजाघर समूचे भारतवर्ष का सबसे प्राचीनतम चर्च है और इस चर्च की रूपरेखा यानी डिजाइन कर्नल जेटी बाल्यु ने सन 1844 में तैयार किया था। तत्पश्चात कड़ी मेहनत और कारीगरों के हुनर से 1857 में इसे बनाकर तैयार कर दिया गया।

आपको यह जानकर हैरानी होगी उस समय इस चर्च को तैयार करने के लिए महल 40 हजार की लागत आई थी। उसके बाद इसके  जीर्णोद्धार पर ही करोड़ों रुपया खर्च किया जा चुका है। चर्च के बाहर जहां आज रेलिंग चमचमाती टाइलें नजर आती हैं वहां पर हरी-भरी घास का लोन हुआ करता था। शिमला के खुशगवार मौसम के चलते अंग्रेजों ने यहां पर अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना उचित समझा और जब तक शिमला ग्रीष्म कालीन राजधानी रही ब्रिटानिया हुकूमत के शासक व आला अधिकारी हर रविवार के दिन यहां पर प्रार्थना करने पहुंचते थे। जिसमें वायसराय भी शामिल थे।

ऐसी भी कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन भी चर्च में प्रार्थना करने आए थे। चर्च के सामने लगी बड़ी सी घड़ी का भी अपना ही महत्व है। क्योंकि यह घड़ी सूर्य की किरणों के आधार पर परछाईं के साथ- साथ समय बताया करती थी। पहाड़ों की रानी शिमला का दिल माने जाने वाला ऐतिहासिक चर्च से आकर्षण का केंद्र रहा है। इसकी अद्भुत कारीगिरी अनायास ही दृष्टा को अपनी ओर आकर्षित करती है। यही वजह है कि यह चर्च रिज मैदान की ही नहीं बल्कि पहाड़ी प्रदेश हिमाचल को भी अलग पहचान दिलाती है और जो भी व्यक्ति इस मैदान पर पहुंचता है चर्च की यादें अपने साथ ले जाना नहीं भूलता है।