जिला कांगड़ा के बालकरूपी मंदिर में लाखों लोगों की आस्था है। ये मंदिर भगवान शिव के बालक रूप का है। इस मंदिर के बिल्कुल सामने विशालकाय तांबे की बनी नंदी बैल की मूर्ति है। इस मूर्ति की भी एक कथा है। जिसके मुताबिक एक कन्या थी जिसकी माता उसे बहुत तंग किया करती थी। कन्या को पशु चराने जंगल भेजा जाता था। दुःखी कन्या ने जंगल में ही शिव का ध्यान लगाना शुरू कर दिया औऱ शिव से अपने भाग्यदय की प्रार्थना करती
है।
कहा जाता है पशु चराते हुए ध्यान में मग्न उस कन्या पर राजा अभय चन्द की नज़र पड़ी औऱ राजा ने कन्या से शादी रचा ली। विवाह के बाद कन्या पिछली बातें भूल गई। कुछ समय उपरांत राजा परिवार किसी अनजाने रोग से फूलने लगे। रानी की फिर प्रार्थना करने पर स्वप्न में पिछली बातें याद आई तब रानी ने नंदी बैल की तांबे की मूर्ति बनाई। बैल का मंदिर , ड्योढ़ी, नगारखाना,धूणी, मंदिर का भंडार और प्रांगण बनवाएं।
इस मूर्ति को आटा उबटन रूप में थोड़ा घी औऱ हल्दी मिला कर मला जाता है। जिससे माना जाता है पामा, दाद, खुजली औऱ चम्ब आदि रोग खत्म हो जाते है। इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि 30 प्रविष्ट 1921 आषाढ़ माह में बाबा के विग्रह से स्वेद निकला जिससे श्रृंगार निकल गया और बैल की मूर्ति ने मल मूत्र त्याग किया। 1976 में एक माह तक मूर्ति मल त्याग करती रही। इस मंदिर में नदी औऱ भोलेनाथ की कृपा से निसंतान को पुत्र मिलता है, मानसिक औऱ शारीरिक कष्ट दूर होते है औऱ मनचाहा फल प्राप्त करते है।