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आज़ादी की लड़ाई में धामी गोलीकांड के शहीदों को नहीं किया जाता याद

पी.चंद, शिमला |

 भारत के आज़ादी के आंदोलन में शिमला का धामी गोलीकांड आज भी याद किया जाता है । ब्रिटानिया हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ धामी के लोगों ने आंदोलन का जो बिगुल फूंका था। जिसकी गूंज समूचे देश में सुनाई दी थी। 16 जुलाई 1939 को धामी में प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन रियासत के राजा के ख़िलाफ़ शिमला से भागमल सोहटा और पंडित सीताराम शर्मा के नेतृत्व में हजारों लोगों ने राजमहल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। भीड़ बेकाबू हो गई व पथराव शुरू हो गया।

कहा जाता है कि बेकाबू भीड़ पर राजा के सिपाहियों ने लाठीचार्ज कर दिया और  गोलियां दागना शुरू कर दी। गोलीबारी में दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि दो अन्य लोगों ने उपचार के लिए ले जाते वक्त रास्ते में दम तोड़ दिया। धामी गोलीकांड से पूरे देश में असंतोष फैल गया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंजाब के मशहूर वकील दुनी चंद की अध्यक्षता में गोलीकांड की जांच के लिए एक समिति का गठन किया। लेकिन राजा धामी व अंग्रेज सरकार ने मिलकर प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां, उनके सामान की कुर्की और देश निकाला जैसे आदेश पारित कर आंदोलन को कुचलने की कोशिश की।

जिससे लोगों में राजा के ख़िलाफ़ ओर अधिक आक्रोश बढ़ गया।  राजा धामी ने ब्रिटिश आर्मी की एक टुकड़ी को मंगवाकर आंदोलनकारियों के घरों को सील करवा दिया। लेकिन आज़ादी के परवानों के हौसले को नहीं तोड़ पाए। आख़िरकार 15 अगस्त 1947 को भारत गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हुआ। आज जब भी स्वतंत्रता संग्राम का ज़िक्र आता है तो धामी गोली कांड को भी याद किया जाता है।