हिमाचल प्रदेश के कबाइली हल्के लाहुल घाटी की तस्वीर कुछ ही दिनों में इतनी बदल गई हैं कि लाहुल वासियों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि यह इसकी खुशी मनाएं कि यह कोई आने वाले पर्यावरणीय खतरे का कोई संकेत भी हो सकता है। तीन अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समुद्रतल से 10040 फीट की उंचाई पर दुनिया की सबसे बड़ी और खूबसूरत कारीगरी की अनूठी मिसाल 9 किलोमीटर लंबी टनल हो कुल्लू और लाहुल घाटी को महज 10 मिंट में जोड़ देती है के उदघाटन के बाद लाहुल हिमाचल प्रदेश से ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों से पर्यटक ऐसे पहुंचने लगे हों जैसे कोई होड़ लगी हो।
जहां इस टनल ने लाहुल घाटी के लोगों की जिंदगी बदल दी, यहां पर तैयार आलू की फसल को रोहतांग दर्रे की बाधा को हटा कर सीधे मार्केट तक सस्ते में पहुंचा दिया, घंटों के सफर को पलों में बदल दिया, वहीं अटल टनल को पार करके दूसरी ओर लाहुल का नजारा देखने वाले पर्यटकों का रेला सा आ गया है। महज दस मिंट में अटल टनल को पार करके लोग दूसरी ओर चंद्रा नदी किनारे जाकर रूक रहे हैं और नजारे को निहार रहे हैं।
अभी टनल के लाहुल वाले छोर पर खाने पीने के सामान की उपलब्धता जैसा कोई प्रावधान नहीं है ऐसे में पर्यटक कुछ दूरी पर सिस्सू गांव को टनल के उस पार का पहला पड़ाव बना रहे हैं। अब सिस्सू टनल से होकर लाहुल घाटी का आबादी वाला पहला गांव है जो खूबसूरत भी है, कस्बानुमा बन चुका है, यहां पर सामने खूबसूरत झरना है, एक कृत्रिम झील है, हैलीपैड है और सबसे खूबसूरत है पापुलर के कतारबद्ध लगाए गए पेड़ जिनमें इन दिनों पत्ते पूरे सुनहरी रंग की तरह हो चुके हैं, चिनार के पेड़ों की तरह जमीन पर कालीन की तरह बिखरे हुए हैं जहां पर पर्यटक रूके बिना नहीं रह पा रहे हैं, इसके हर नजारे को मोबाइल या कैमरों में कैद करके इसकी यादें संजो कर रख रहे हैं। एक बेहद खूबसूरत नजारा इन दिनों यहां पर बना हुआ है।
सिस्सू में पर्यटकों के गुजारे लायक सभी तरह की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। कृत्रिम झील में वोटिंग का भी प्रावधान है, यहां पर लोक निर्माण विभाग का रेस्ट हाउस भी है, निजी होटल व होम स्टे भी हैं और फिर इस गांव को सरकार ने पर्यटक गांव का दर्जा भी दे रखा है। ऐसे में अधिकांश पर्यटक जो टनल को देखने आ रहे हैं सिस्सू तक जा रहे हैं जबकि जिज्ञासू इससे आगे लाहुल की खूबसूरत पट्टनघाटी स्थित त्रिलोकीनाथ मंदिर व उदयपुर के मृकुला माता मंदिर तक भी जा रहे हैं। कुछ पर्यटक इसी बहाने लेह मार्ग पर बारालाचा जोत तक जाकर सूरजताल के नजारे को भी देखने की हिम्मत जुटा रहे हैं।
अब घाटी के ऐतिहासिक गांव गोंधला जहां पर कुल्लू के राजा विधि चंद के समय में बना 15 वीं शताब्दी का किला भी है के पूर्व पंचायत प्रधान व वरिष्ठ नागरिक लाल चंद कटोच की माने तो वह कहते हैं कि कुछ हद तक तो पर्यटक ठीक हैं मगर यदि एकदम से रेला आएगा, गंदगी फैलाएगा, यहां पर ठहराव के अभी पूरे इंतजाम नहीं है, सर्दियां आने वाली हैं, अब सीजन लगभग आफ है तो इसके नुकसान भी हो सकते हैं।
हालांकि लाल चंद कटोच ने तो बहुत पहले से ही गोंधला में होम स्टे बना रखा है। उनका मानना है कि सरकार को यहां के मौसम के अनुकूल पर्यटन ढांचा विकसित करना होगा, लोगों को भी उसी के अनुरूप तैयार रहना होगा वरना यह घातक सिद्ध हो सकता है। आम तौर पर रोहतांग दर्रा 15 नवंबर को अधिकारिक तौर पर बंद हो जाता है और फिर तीन अक्तूबर 2020 से पहले जब से लाहुल आबाद हुआ है तब से लेकर यह घाटी 6 महीने तक बर्फ की आगोश में सिमट कर शेष दुनिया से कट जाती है मगर इस बार ऐसा नहीं होगा।
टनल बन जाने से घाटी के भीतर जनजीवन सर्दियों में भी सामान्य की तरह चलेगा। अब यह लाहुल के लोगों की जिंदगी में पहली बार होगा तो इसका अनुभव भी आने वाले दिनों में ये लोग सांझा करेंगे। बहरहाल यह अलग दुनिया वाला कबाइली क्षेत्र इन दिनों पर्यटकों के रेले को देखकर अवाक सा है, जहां टनल बन जाने से पूरी घाटी में आजादी जैसा माहौल देखने को मिल रहा है वहीं अचानक यहां मानवीय दबाव बढ़ने से जो पर्यावरणीय खतरा दिख रहा है उसकी ओर भी सचेत रहने की जरूरत लग रही है।