घर द्वार पर जनता की समस्याओं को निपटाने के लिए जयराम सरकार ने जून, 2018 में जनमंच शुरू किया था। जनमंच पर सरकार ने डेढ़ साल के भीतर ही तीन करोड़ 32 लाख फूंक दिए। जबकि 18 जनमंच कार्यक्रमों में मात्र 10 हज़ार शिकायतों का ही निपटारा हो पाया। इसमें नवंबर महीने में आयोजित हुए जनमंच के खर्चे का ब्यौरा शामिल नहीं है। 19वां जनमंच पांच जनवरी में किन्नौर और लाहौल-स्पीति को छोड़ दस जिलों में होना है। एक जनमंच पर औसतन 1 लाख 96 हजार से अधिक का खर्चा आ रहा है।
जनमंच में हैरान करने वाले आंकड़े ये हैं कि लगातर जनमंच में खर्चा बढ़ता ही गया। ये खर्चा लाखों में बढ़ रहा है। ख़बर तो ये भी है कि सरकार जनमंचों का ऑडिट करवाने की भी सोच रही है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति पहले ही डमाडोल चल रही है। हिमाचल 50 हज़ार से अधिक घाटे के दौर से गुज़र रहा है। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री शुरू से ही जनमंचों पर सवाल उठाते रहे हैं। उनके मुताबिक़ जश्न एवं जनमंचों पर इस तरह का पैसा बहाना प्रदेश को विकास नहीं अंधकार की राह में धकेल देगा।