हिमाचल प्रदेश राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के सदस्य एवं उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने मांग की है कि राज्य में नई विकलांगता नीति बनाई जाए। उन्होंने हाईकोर्ट द्वारा साल 2015 में उनकी जनहित याचिका पर विकलांगों की शिक्षा विश्वविद्यालय स्तर तक बिल्कुल मुफ्त किए जाने के आदेश को तुरंत लागू करने की मांग भी की। अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस की पूर्व संध्या पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉक्टर राजीव सैजल को लिखे एक पत्र में प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि राज्य सरकार विकलांगजनों के सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है। इसके बावजूद अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि विकलांग जन अधिकार कानून 2016 लागू होने के बाद नई राज्य विकलांगता नीति बनाने की आवश्यकता है। इसमें दिव्यांग व्यक्तियों के सभी अधिकारों का विवरण हो और उनकी शिक्षा, रोजगार और स्वरोजगार पर विशेष तौर पर फोकस किया जाए। पुरानी विकलांगता नीति 1995 के विकलांगता कानून को ध्यान में रखकर बनाई गई थी जिसकी अब प्रासंगिकता नहीं है।
अजय श्रीवास्तव ने कहा की केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ष गठित विकलांगता सलाहकार बोर्ड राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छा काम कर रहा है। लेकिन डेढ़ वर्ष पहले राज्य सरकार द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ राजीव सैज़ल की अध्यक्षता में गठित राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड अभी तक अपना काम ही नहीं शुरु कर पाया है। उनका कहना है कि साल 2015 में उनकी जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ ने सरकार को आदेश दिए थे कि विश्वविद्यालय स्तर तक विकलांगजनों की शिक्षा निशुल्क की जाए। इसमें सभी प्रोफेशनल और वोकेशनल कोर्स शामिल हों।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने 2015 से ही हाईकोर्ट के इस आदेश को लागू कर दिया। लेकिन राज्य सरकार अभी तक इसे लागू नहीं कर पाई है। उन्होंने याद दिलाया कि मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की तर्ज पर उन सभी स्कूलों और कॉलेजों में दृष्टिबाधित एवं अन्य दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए सुगम्य लाइब्रेरी स्थापित करने की घोषणा कर चुके हैं जहां दिव्यांग बच्चे पढ़ रहे हैं। लेकिन इस दिशा में अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है।