पिछ्ली मोदी सरकार ने कार्यभार संभाला था उस समय बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए सरकार ने ट्रांसपोर्ट सर्विस प्रोवाइडर के लाइसेंस पूरे प्रदेश में जारी करने की एक बात कही थी। सरकार ने बकायदा इसके लिए युवाओं से एक रिटन टेस्ट भी लिया था और जो लोग उस टेस्ट में क्वालीफाई हुए थे उन्हें ही यह लाइसेंस देने की बात कही थी।
इसके बाद नियम बनाया गया कि जनरल कैटिगरी के लोग 25000 रुपये इस लाइसेंस के लिए सरकार के पास जमा करवाएंगे और आरक्षित के 20000 थे। और इसकी एवज में उन्हें एक कोड दिया जाएगा। जिसके तहत वह अपना काम गाड़ियों को लेकर शुरू कर सकते हैं ।
ट्रांसपोर्ट सर्विस प्रोवाइडर का बेसिक काम था कि गाड़ियों की सेल पर उनके कागज बनवाना परमिट बनवाना ट्रांसफर करवाना जैसा जितना भी पेपर वर्क पहले दलालों के हाथों से होता था अब उसके लिए सरकार ने इन लोगों को अधिकृत करना था । लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को पूरे देश में लागू किया था।
जिसमें हिमाचल प्रदेश भी था लेकिन हैरानी इस बात की है कि प्रदेश सरकार ने जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी उस समय 401 लोगों को यह लाइसेंस देने की बात कही गई थी और इसके लिए सभी ने अप्लाई भी किया था।
करीब 80 लाख रुपया सरकार ने लाइसेंस फी के फीस के रूप में इन बेरोजगार युवाओं से जमा किया था लेकिन हैरानी इस बात की है कि पहले कांग्रेस सरकार की बात कहते रहे कि उन्होंने लागू नहीं किया। लेकिन, जैसे ही प्रदेश में जयराम की सरकार बनी तो उन्होंने इस नियम को ही पूरी तरह बदल दिया।
जहां पर इन ट्रांसपोर्ट सर्विस प्रोवाइडर ओं को भाजपा सरकार ने पूरे प्रदेश में एक कोड देकर काम शुरू करवाना था। इसकी जगह भाजपा सरकार ने सीधे गाड़ियों के शोरूमों को ही कागज बनवाने के लिए अधिकृत कर दिया।
जिससे 401 बेरोजगार युवाओं के ऊपर एक बार फिर बेरोजगारी का श्राप पड़ गया। इन्हीं में से कुछ युवा कहते हैं कि बड़े दिनों से हम इस इंतजार में थे कि प्रदेश में बीजेपी की सरकार आएगी और हम बेरोजगार युवाओं को लेकर कोई ठोस निर्णय लेगी। लेकिन, हमें ना तो कोई सरकार की तरफ से लाइसेंस का कोड मिला ना ही कोई पोर्टल जिसके माध्यम से सारा काम हुआ था।
उस तरह की कोई सुविधा हमें प्रोवाइड करवाएंगे उन्होंने कहा कि इस विषय को लेकर जल्दी ही हम लोग सरकार से मिलने जा रहे हैं और अगर हमारे साथ सरकार ने न्याय नहीं किया तो हम हमें सड़कों पर भी उतरना पड़ेगा। वहीं इस स्कीम की वास्तविकता ये है की नए अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है और सरकार ने नुमाइंदे भी इस विषय में कुछ नहीं बोल रहे हैं ।