भारतीय हॉकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपकि में पदक जीतने में सफलता पाई है। भारत की टीम ने गुरुवार को खेले गए मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीतने में सफलता पाई है। ओलंपिक में भारत की इस जीत से पूरे देश में खुशी की लहर है। टोक्यो ओलंपिक में जिस हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। हिमाचल का वरुण भी इस टीम का हिस्सा था, इससे हर प्रदेशवासी गदगद है। इस ऐतिहासिक जीत से चंबा के लाल ने पूरे विश्व में हिमाचल का नाम रोशन किया है।
बता दें कि वरूण का जन्म 25 जुलाई 1995 को जन्मे वरुण कुमार डलहौजी उपमंडल की ओसल पंचायत के रहने वाले हैं। वर्तमान में वह अपने परिवार सहित पंजाब के जालंधर में रह रहे हैं। पंजाब के जालंधर में शिक्षा ग्रहण कने के उपरांत वरुण वर्तमान में भारत पेट्रोलियम कंपनी नोएडा में सेवाएं दे रहे हैं। पिता ब्रहमानंद भी नौकरी के सिलसिले में जालंधर में ही रह रहे हैं। वरुण के पिता ब्रह्मानंद पेशे से ट्रक ड्राईवर हैं। वो मिट्ठापुर गांव में ट्रक चलाकर परिवार का जीवन यापन करते है।
वरुण कुमार को हॉकी खेलने का जुनून था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। वरुण के पास हॉकी स्टिक खरीदने के भी पैसे नहीं थे। वरुण अपने सपनों को साकार करने के लिए काफी यत्न किए। वो भारतीय कप्तान मनप्रीत सिंह बचपन के दोस्त थे। स्कूल में दोनों एक साथ हॉकी खेला करते थे। शुरुआत में वरुण हॉकी को लेकर गंभीर नहीं थे। लेकिन मनप्रीत द्वारा उन्हें प्रेरित किया गया। दोनों साथ में सुरजीत हॉकी अकादमी पहुंचे।
हॉकी का असर उनकी पढ़ाई पर भी पढ़ा। हॉकी खेलने से पहले वे पढ़ाई मे काफी अच्छे ते लेकिन धीरे-धीरे सब छूट गया। हॉकी में अपने शानदार डिफेंस के चलते वह लोगों की नजरों में आए। साल 2012 में उन्हें पंजाब की टीम में अपना पर्दापण किया। जबकि तब वह केवल 17 ही साल के थे। इसी साल वह जूनियर वर्ल्ड कप की टीम के लिए भी चुने गए थे। लेकिन चोटिल होने के कारण वह खेल नहीं पाए। इसके बाद उन्हें साल 2016 में वर्ल्ड कप के लिए चुना गया। यहां अपने प्रदर्शन से टीम को दूसरी बार यह खिताब जीतने में मदद की। इसके अगले ही साल उन्होंने सीनियर टीम में डेब्यू किया और बेल्जियम के खिलाफ गोल करके टीम को जीत दिलाई थी।