आज के दिन यानी 16 दिसंबर 1971 को हिन्दुस्तान के जांबाज वीर सपूतों ने जीत का सेहरा बांधकर दुनिया को अपनेशौर्य का लोहा मनवाने पर मजबूर कर दिया था। 16 दिसंबर को पूरा देश बड़े ही गर्व के साथ शौर्य दिवस मनाता है। यही वो दिन था जब 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। इसके साथ ही बांग्लादेश को स्वतंत्र करवाकर इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से यह लिख दिया गया था। पाकिस्तान के साथ हुए 1971 के युद्ध में हिमाचल के योगदान को भी देश भुला नहीं सकता। हिमाचल के 195 सैनिकों ने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस युद्ध में कांगड़ा के 61 सैनिकों, हमीरपुर के 33, ऊना के 28 मंडी के 22, बिलासपुर के 21 , चंबा के 13, सोलन के 7, शिमला और किन्नौर के 5, कुल्लू और लाहौल- स्पीति से 3, सिरमौर से 2 सैनिकों का बलिदान भी शामिल है।
भारत ने बांग्लादेश को एक नया राष्ट्र बनाने में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष थाइसका आरंभ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान द्वारा 3 दिसंबर1971 को पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले से किया गया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन के लिए तैयार हो गई थी 48 साल पहले की यही वो तारीख थी। जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोलकर अपने बंटवारे को न्यौता दिया था। इसके साथ ही भारत-पाकिस्तान युद्ध का आगाज हो गया। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी एयरफोर्स के लड़ाकू विमानों ने पश्चिमी सीमा पर अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर, अवंतीपोरा, उत्तरलाई, जोधपुर, अंबाला और आगरा के हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी की थी। जिसका अंजाम उसे 16 दिसंबर को भुगतना पड़ा था।
भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए. ए- के नियाजी ने आत्मसमर्पण कर दिया था। जिसके बाद 17 दिसंबर को 93हजार पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया।इस युद्ध में करीब 3900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे जबकि 9851 घायल हुए थे।भारतीय सेना ने जेसोर और खुलना पर कब्जा कर लिया था।14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश को पकड़ लिया। इसके तहत सुबह 11 बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक अहम बैठक होने वाली थी।इस मीटिंग में पाकिस्तानी प्रशासन के बड़े अधिकारी हिस्सा लेने वाले थे। भारत ने तय किया कि इसी समय उस भवन पर हमला किया जाए। बैठक के दौरान ही भारतीय विमानों ने गवर्नमेंट हाउस के छत को बम से उड़ा दिया गया। जिसके बाद गवर्नर मलिक ने अपना इस्तीफा लिखा। उस समय हालात इतने खराब हो गए थे कि सेना का प्रयोग करना पड़ा।