जरूरी नहीं की दुनिया में जन्म लेने वाला हर बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हो। कुछ बच्चे अल्पविकसित रह जाते हैं। जिनको संसार में आते ही कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे बच्चों व लोगों के लिए अलग अलग नाम तो दिए जाते है लेकिन इनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए जो काम किया जाना चाहिए उसमें बड़ा बदलाब नहीं दिखता है। शिमला की अभी संस्था ऐसे दिव्यांग बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए पिछले एक दशक से प्रयत्नशील है।
सरकारें भी दिव्यांगों के लिए कई तरह के कार्य कर रही है। इसके अलावा निज़ी संस्थान भी इस दिशा में आगे आए है। शिमला की अभी संस्था की मदद के लिए अब अवसर संस्था सामने आई है। जिसनें दिव्यांगों के दर्द को समझते हुए उनके जीवन स्तर के सुधार के लिए नए उपकरण उपलब्ध करवाए है। अभी संस्था की अध्यक्ष मीनू सूद ने बताया कि दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाकर उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सभी को अपना सहयोग देना चाहिए।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दो करोड़, 68 लाख, 10 हजार 557 व्यक्ति विकलांग थे, जो कि कुल जनसंख्या का 2.21 फीसदी बैठता है, जबकि विश्व की कुल आबादी के 15 फीसदी लोग विकलांग हैं। यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक शारीरिक या मानसिक तौर पर चुनौती प्राप्त लोगों की कुल संख्या एक लाख 55 हजार 950 थी। 2011 की जनगणना में इनकी संख्या में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।