कोरोना काल में जितनी तेजी से शिक्षा व्यवस्था चौपट हुई है उतनी तेजी से सरकारें शिक्षा को लेकर संजीदा नहीं रही हैं। 17 दिसंबर को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के आह्वान पर देश के अलग-अलग जगह बेरोजगारी दिवस मनाया गया। चूंकि, 17 सितंबर को पीएम मोदी का जन्मदिन है, ऐसे में इस दिन को विपक्ष उनकी नाकामियों से जोड़कर राष्ट्र के सामने एक मुहिम पेश करने की कोशिश में लगा है। चुनावों के दौरान बीजेपी ने युवाओं को नौकरियां देने का जो वादा किया था वो पूरा नहीं कर पाई। हालांकि, अगर इस समस्या की तह को बारीकी से देखें तो इसमें खामियां शिक्षा के शुरुआती दौर से ही दिखाई देने लगेंगी।
खासकर अगर हिमाचल की बात करें तो कोरोनाकाल में शिक्षा की हालत खस्ताहाल रही है। देश और प्रदेशों के सरकारी विभागों में कई पद खाली हैं। युवा रोजगार के लिए तरस रहे हैं और सरकारी विभागों में काम करने वाले कर्मचारी और अधिकारी काम के बोझ तले दबे हुए हैं। जो लोग काम कर भी रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि शायद उनके अच्छे दिन कभी ना कभी आ ही जाएंगे, लेकिन आलम ये है कि कम कर्मचारियों में विभाग ऐसा काम ले रहे हैं कि मानो अब किसी भी भर्ती की कोई आस ना बची हो।
युवा यही आस लगा कर बैठा है कि कभी ना कभी सरकारें उनकी ओर गौर करेंगी, लेकिन चुनाव के वक्त जिस तरह पार्टियां युवाओं के भरोसे सत्ता पर आसीन होती हैं उसके उलट चुनाव के बाद बेचारे वही युवा दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर होते हैं। कोरोना काल में लाखों लोग बेरोजगार हुए और वे लोग अभी तक अपनी बेरोजगारी के दंश से उभर नहीं पाए।
हिमाचल विधानसभा में रखे गए आंकड़ों के मुताबिक 31 जनवरी 2020 तक प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में शिक्षित बेरोजगारों की पंजीकृत संख्या अब तक 8 लाख 46 हजार 209 है। जिनमें से सरकार 2018 व 19 में मात्र 28661 बेरोजगारों को ही रोजगार दे पाई। इसमें भी नियमित -3109, अनुबंध -17390, दैनिक भोगी- 415, आउटसोर्सिंग- 7747 बेरोजगारों को रोजगार मिला। ये आंकड़ा कोरोना के पहले का है। कोरोना काल के दौरान हिमाचल के हज़ारों युवा बेरोजगार हुए हैं। जो चिंता का विषय है।
हिमाचल प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में 76,318 -पोस्ट ग्रेजुएट, 1,36,517 -ग्रेजुएट, 4, 04, 819- 12वी पास, 1, 95,548 -10वीं व इससे नीचे के 33,007 युवा बेरोजगार पंजीकृत हैं। जो हिमाचल जैसे छोटे से राज्य के लिहाज़ से संतोषजनक आंकड़े नहीं कहे जा सकते हैं।
जिन लोगों की नौकरियां अचानक चली गई हैं या लॉकडाउन के कारण रोजगार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। और सरकारें हैं कि चुनावी घोषणाओं और सरकारी कार्यक्रमों में अपना पैसा खर्च करने में लगी हैं। क्या सरकारों को अब रोजगार और आम जनता से जुड़े हितों पर काम करने की जरूरत नहीं है। क्या हिमाचल प्रदेश में जयराम सरकार ने युवा वर्ग को खुश कर रखा है? क्या हिमाचल प्रदेश के युवा जयराम सरकार के कामकाज से खुश हैं? अगर ऐसा है तो जो स्थिति कोरोना काल में बेरोजगारी दर की रही है, वो स्थिति आगे कब तक सही हो पाएगी? ये सबसे बड़ा सवाल है?