हिमाचल की राजनीति कुछ अलग ही रंग दिखा रही है। पहले कांग्रेस के 6 बागियों का अपनी पार्टी को छोड़ बीजेपी ज्वाइन करना और उसके बाद बीजेपी नेताओं में बवाल मचना। राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो क्या सच में नेताओं को जनता की परवाह है। या फिर सत्ता की चाह है।
आज हम बात करेंगे हिमाचल की राजनीति के बारे में। हिमाचल की राजनीति में जो उथल-पुथल मची है,उसका जिम्मेदार आखिर कौन? हिमाचल में कांग्रेस पार्टी के 6 बागी नेता जो 15 महीने तक तो अपनी सरकार से जुड़े रहे, लेकिन मंत्री पद नहीं मिलने के चलते उन्होंने अपनी ही पार्टी से बगावत कर ली और बीजेपी का दामन थाम लिया। इसके साथ ही तीन निर्दलीय विधायकों ने भी इन बागियों का साथ दिया और इन्होंने भी बगावत कर बीजेपी को ज्वाइन कर ली।
अब देखने वाली बात यह है कि क्या यह सच में जनता के हित के बारे में सोच रहे है। या सच में उन्हें सत्ता की लालसा थी। राजनीतिक जिसे समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। कौन कब अपना दल बदल ले, इसका कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
देखा जाए तो जैसे ही इन बागियों ने बीजेपी से टिकट लेकर अपने-अपने इलाकों से उपचुनाव लड़ने का फैसला लिया तो वहां बीजेपी में बगावत के सुर उठने लगे हैं।
बीजेपी के नेता जहां पहले उन जगहों से चुनाव लड़ती थी और कई बार जीत भी दर्ज की थी, वहां पर इन छह बागियों को देखकर तिलमिला गई है और बीजेपी के नेता भी बागी बनने से परहेज नहीं कर रहे है। यहां तक की कांग्रेस पार्टी में जाने की बात कही जा रही है। ऐसे में देखा जाए तो क्या सच में यह जनता का हित सोच रही है या फिर इन्हें अपने ही कुर्सी की लालसा दिखाई दे रही है।
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