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किसानों के लिए सिरदर्द बने जंगली जानवर, आखिर किसान अपनी फसल कैसे बचाएं

सुनिल ठाकुर, बिलासपुर |

जाड़े की सर्द रातों में हवा के ठंडे झोंको के बीच खेतों में पूरी रात जंगली जानवरों से अपनी फसलों की रक्षा करता मोर्चे पर खड़ा किसान आखिर करे तो क्या करे।

जी हां, देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने "जय जवान के साथ जय किसान" का नारा यूं ही नहीं दिया है। क्या कभी आपने भी सोचा है कि बुआई से लेकर कटाई के 6 माह तक किन परिस्थितियों में अन्नदाता दिन में बन्दरों तो रात में जंगली जानवरों से किस तरह लड़ाई लड़ रहा है।

अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं समय- रात करीब 11 बजे स्थान – नयनादेवी विधानसभा क्षेत्र के विकास खण्ड स्वारघाट की ग्राम पंचायत कुटैहला का गांव काथला हूटर जैसी आवाज के साथ खेतों से विभिन्न प्रकार की आवाजें आने पर जब मौके पर जाकर देखा तो वहां जंगली जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए खेतों में ही बिस्तर लगाए ठंड में ठिठुरता एक किसान ओमप्रकाश था जोकि जंगली जानवरों से अपनी मेहनत की कमाई को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा था।

जब हमने किसान ओम प्रकाश की पीड़ा को जानने का प्रयास किया तो उसने हमें बताया कि दिन में बन्दरों से फसल को बचाने के बाद रात को नीलगायों के बढ़ते आतंक से अपनी फसलों को बचाने के तमाम तरीके फेल होने के बाद अब उनके पास रात को खेतों में ही बिस्तर लगाने का एकमात्र सहारा बचा है।