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कुल्लू के भुंतर में वर्ल्ड बिग स्लीप आउट डे का आयोजन किया

<p>जिला कुल्लू के भुंतर मेला ग्राउंड में वर्ल्ड बिग स्लीप आउट डे का आयोजन किया गया जिसमें जिला कुल्लू के लगभग 70 लोगों ने भागीदारी सुनिश्चित की और रात को खुले आसमान के नीचे सोए। हालांकि इसका आयोजन इसका आयोजन दुनिया भर में किया गया। लेकिन कुल्लू जिला में संभवत: इस तरह का यह कार्यक्रम भुंतर शहर के बीचोंबीच किया गया। इसके आयोजन का मुख्य मकसद बेघरों की आवाज को बुलंद करना था। बेघरों की आवाज को बुलंद करने के लिए इस तरह का कार्यक्रम भारत के लगभग 26 शहरों में किया गया। जबकि इस कार्यक्रम के तहत दुनिया भर के 10 लाख लोग खुले आसमान के नीचे सोए। आयोजन समन्वयक संदीप मिन्हास के अनुसार इसके आयोजन का मकसद सरकारों को बेघर लोगों के लिए ठोस कदम उठाने तथा आम समाज को इनके प्रति जागरूक और संवेदनशील होने के लिए किया गया।</p>

<p>उनकी माने तो ज्यादातर बेघर लोग जो रात को सड़कों के किनारे फुटपाथ पर, बस स्टॉप पर पार्कों आदि में सोते हैं। ठंड में ज्यादा ठंड केया गर्मी के कारण या छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के अभाव में मर जाते हैं। समाज भी ऐसे लोगों को देखता तो है। लेकिन असंवेदनशीलता के कारण अनदेखा कर देता है और इनको या तो नशेड़ी या फिर ऐसे संज्ञान देता है। जिसको देने के बाद अपने आप को जिम्मेदारी मुक्त समझने लगता है। शहर का प्रशाशन भी ऐसे लोगों को अपने शहरों से खदेड़ने का काम ज्यादा करता है इसी कारण यह लोग ज्यादातर एक शहर से दूसरे शहर भटकते रहते हैं और हर शहर में नई मुसीबतों का सामना करते हैं। ज्यादातर तो हार कर रहमो कर्म पर जीने को मजबूर होते हैं। ज्यादातर लोगों में इनके प्रति कई तरह की भ्रांतियां फैलाई जाती हैं और इन भ्रांतियों को फ़ैलाने में समाज, प्रशाशन और ज्यादातर राजनेता भी जिम्मेदार हैं। इस आयोजन में सहारा, मानव सेवा और लोकतंत्र संगठनों के पदाधिकारियों महिमन चन्द्र, राजेन्द्र चौहान, पाबिंद्र कुमार, श्याम लाल हांडा, डिंपल, डीआर आनंद, राकेश शर्मा, माइकल, मेहता, दीपक कुमार, अरुण गर्ग भी शामिल रहे ।</p>

<p>बेघर लोगों में सबसे ज्यादा उजाडे़ गए लोग संदीप के अनुसार वास्तविकता देखी जाए तो बेघरों में सबसे बड़ा तबका उन लोगो का है जो विकास के नाम पर कहीं ना कहीं से उजाडे गए हैं जिनमें भी सबसे बड़ा तबका उनका है जिनकी उन स्थानों पर जमीनें ना के बराबर थी और खेती मजदूरी या कृषि से जुड़े हुए काम कर रहे थे। चाहे कोयला खदाने हों या बड़े बांध, या हवाई पट्टियां, सड़कें या अन्य बड़ी परियोजनाएं, इसके अलावा बाढ़, सूखा, और अब सरकारी आदेशों से जंगलों से उज़ाडे जाने वाले आदिवासियों की संख्या भी लगातार बेघरों की संख्या में इजाफा कर रही है। आयोजन का मकसद भी समाज और सरकारों को इस मसले को समझने और इस के प्रति संवेदनशील होकर आगे आकर अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जागरूक करना था।</p>
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