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1984 सिख दंगा: दोषी यशपाल को फांसी की सज़ा, नरेश को उम्र कैद

समाचार फर्स्ट डेस्क |

1984 में हुए सिख दंगा केस में यशपाल को फांसी को सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही सिख दंगे के दोषी नरेश को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। तिहाड़ जेल के अंदर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है।

ग़ौरतलब है कि अदालत ने 1 नवंबर 1984 को महिलापुर इलाके में दो सिख युवाओं की हत्या के आरोप में दो स्थानीय लोगों नरेश सहरावत और यशपाल सिंह को दोषी ठहराया है। इन अभियुक्तों पर घटना वाले दिन पीड़ित परिवार की दुकान में लूट करने, दंगा फैलाने, दो सिख युवकों को जिंदा जलाकर मारने, मृतकों के भाइयों पर जानलेवा हमला करने का दोष साबित हुआ है। अदालत ने अपने फैसले में माना है कि बेशक इस मामले में फैसला आने में 34 साल लगे, लेकिन पीड़ितों को आखिर इंसाफ मिला है।

कैसे शुरू हुए सिख दंगे…??

दरअसल, 1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय सिखों के ख़िलाफ़ थे इन दंगों का कारण था इंदिरा गांधी के हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा जो कि सिख थे। उसी के जवाब में ये दंगे हुए थे। इन दंगों में 3000 से ज़्यादा मौतें हुई थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1970 के दशक में इंदिरा द्वारा लगाए गए भारतीय आपातकाल के दौरान, स्वायत्त सरकार के लिए चुनाव प्रचार के लिए हज़ारों सिखों को क़ैद कर लिया गया था। इस छुट-पुट हिंसा के चलते एक सशस्त्र सिख अलगाववादी समूह को भारत सरकार द्वारा एक आतंकवादी संस्था के रूप में नामित कर दिया गया था। जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के द्वारा इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर पर क़ब्ज़ा करने का आदेश दिया और सभी विद्रोहियों को खत्म करने के लिए कहा, क्योंकि स्वर्ण मंदिर पर हथियार बंद सिख अलगाववादियों ने क़ब्ज़ा कर लिया था।

भारतीय अर्धसैनिक बलों द्वारा बाद में पंजाब के ग्रामीण इलाक़ों से अलगाववादियों को ख़त्म करने के लिए एक ऑपरेशन चलाया था। इन दंगो का मुख्य कारण स्वर्ण मंदिर पर सिक्खों का घेराव करना था। सिक्खो की मांग एक ख़ालिस्तान नाम का एक अलग देश बनाने की थी जहां केवल सिख और सरदार ही रहेंगे, लेकिन कांग्रेस सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। सिख कई चेतावनियों के बाद भी मंदिर को नहीं छोड़ रहे थे इसी के चलते इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर पर से सिक्खों को हटाने के लिए मिल्ट्री की सहायता ली और वहां हुई मुठभेड़ में बहुत से सिख मारे गए। यह देख कर इंदिरा गांधी के दो अंगरक्षक जो के सिख थे उन्होंने 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी पर गोलियां चला कर उनकी हत्या कर दी।

उसके देश भर सिख दंगे भड़के जिसमें 3 हजार से ज्यादा सिखों की मौत हुई। सीबीआई की राय में सभी हिंसक कृत्य दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सहमति से आयोजित किये गए थे। राजीव गांधी जिन्होंने अपनी मां की मौत के बाद प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी और जो कांग्रेस के एक सदस्य भी थे, उनसे दंगों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा था, "जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब पृथ्वी भी हिलती है।"