दिल्ली में भूख से तीन बच्चियों की मौत पर जिन्हें शर्मिंदा होना चाहिए वो सियासत कर रहे हैं। सत्ता पर काबिज केजरीवाल ने कहा कि घर-घर अनाज की योजना लागू नहीं करने दोगे तो यही होगा। बीजेपी और कांग्रेस भी भूख के चूल्हे पर सियासत की रोटियां सेंक रही हैं।
8 साल की शिखा, 4 साल की मानसी और 2 साल की पारुल भूख के कारण मौत की नींद सो गईं। दिल्ली के मंडावली इलाके की ये तीन बच्चियां भूख से तड़प-तड़पकर मर गईं। ये हमारा आकलन नहीं बल्कि उन डॉक्टरों का है जिन्होंने शिखा, मानसी और पारूल की डेड बॉड़ी का पोस्टमार्टम किया।
पेट में नहीं था अनाज का एक दाना, डॉक्टर
खुद डॉक्टर ने कहा कि बच्चियों के पेट में अनाज का एक दाना नहीं था, चेहरा सूखकर बंदर की तरह हो गया था। बदन पर वसा यानी फैट या चर्बी का नामोनिशान नहीं था। वही हाल इन बच्चियों की मां का था। बच्चियां भूख का सामना नहीं कर सकीं इसलिए दम तोड़ दिया। मां जिंदा तो है लेकिन कब तक रहेगी पता नहीं। पिता खाने का इंतजाम करने घर से निकले तो अभी वापस नहीं लौटे।
मौत पर सियासत शुरू
तीन बच्चियों की भूख से मौत का सवाल है इसलिए मासूमों के दम तोड़ जाने के बाद उनके यहां नेताओं का आना-जाना शुरू हो गया है। बीजेपी नेता मनोज तिवारी आए, कांग्रेस के अजय माकन आए, आम आदमी पार्टी के नेता भी आएंगे लेकिन ये तय है कि इन तीन बच्चियों की घर वापसी नहीं होगी।
सरकार मानने को तैयार नहीं, दो बार करवाया पोस्टमार्टम
अब तक की मेडिकल रिपोर्ट से साफ लग रहा है कि बच्चियों की मौत भूख से हुई है। लेकिन कोई भी सरकार इस सच को मानती कहां है। केजरीवाल सरकार भी भूख से मौत मानने को तैयार नहीं है। इसलिए दो-दो बार अलग-अलग अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया गया।
भूख से मौत का ये मामला संसद में भी उठा है। विपक्ष का कहना है कि आम आदमी के हक की बात करने वाले केजरीवाल एक रिक्शा चलाने वाले की तीन बेटियों का पेट नहीं भर पाए। किसी भी सरकार के लिए ये शर्म की बात है।